शहर से गायब हैं तो आएगा कौन
(ब्यूरो कार्यालय)
गाजियाबाद (साई)। यूं तो जिले में गौरैया संरक्षण के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं, लेकिन कौए पर जरा भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिहाजा अब कौवे कम नजर आ रहे हैं। सही वातावरण और हरियाली कम होने से कौवे लुप्त हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पितृ पक्ष में पितृों की आत्मिक शांति को कौवे के लिए भी भोजन निकाले धारणा है।
पर्यावरणविद विजयपाल बघेल बताते हैं कि कौवे नीम, पीपल, बरगद जैसे पेड़ों पर ही आते हैं। शहर में ये पेड़ कम होते जा रहे हैं। नई सोसायटी बनने से ऐसे पेड़ कटते जा रहे थे। कौवों को खाने को जो भी मिल रहा था, वह भी जहरीला हो गया है।
कौवों को बुलाने के लिए लगाए जा रहे पेड़
कौवों की संख्या बढ़ने के लिए लिए पिछले तीन-चार वर्षों से नीम, पीपल, बरगद, पिलखन के पौधे लगाए जा रहे हैं। अब गोविंदपुरम, रईसपुर, राजनगर, साईं उपवन जैसे क्षेत्रों में कौवे दिखाई देने लगे हैं। वहीं राजनगर एक्सटेंशन, क्रॉसिंग रिपब्लिक, वसुंधरा, इंदिरापुरम जैसे क्षेत्रों में इन पेड़ों को नहीं होने से कौवे नहीं दिख रहे हैं।
अब कम दिखते हैं कौए
श्राद्ध के समय ही लोगों को कौए की याद आती है, मगर आसानी से नहीं मिल पाते हैं। इसके लिए लोगों को भटकना पड़ता है। बहुत से लोग छत पर भोजन रखते हैं तो वह ऐसा ही रखा रह जाता है। पुराने मोहल्लों और सोसायटियों में तो कौए दिखाई ही नहीं देते हैं।