‘हिंदी नहीं थोप रहे, भाषाई क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रहे’

 

 

 

 

 

 

नई शिक्षा नीति के विरोध पर बोले कस्तूरीरंगन

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। नई शिक्षा नीति में हिंदी के झुकाव संबंधी आरोपों के बाद सरकार ने ड्राफ्ट में बदलाव कर दिया है। हालांकि, कमिटी के अध्यक्ष डॉक्टर के. कस्तूरीरंगन ने कहा कि शिक्षा नीति पर भ्रम की स्थिति बन गई जबकि उसका उद्देश्य हिंदी थोपने को लेकर नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीयता पर जोर है।

हिंदी के प्रति झुकाव के आरोप पर उन्होंने कहा, ‘हमने पिछले अनुभवों, स्थानीय आकांक्षाओं के अलावा बोली जाने वाली भाषाओं, उनकी उपयोगिता और शिक्षकों की उपलब्धता को ध्यान में रखकर स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई के माध्यम के रूप में त्रिभाषा फॉर्म्युले को जारी रखने की सिफारिश की है। हम इस नतीजे पर पहुंचे कि भाषा का मसला बेहद संवेदनशील है और त्रिभाषा फॉर्मूला पहले की नीतियों में स्वीकार किया जा चुका है, लिहाजा हमें उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

हिंदी थोपे जाने का आरोप पूरी तरह से गलत

हिंदी थोपे जाने पर सफाई देते हुए डॉक्टर कस्तूरीरंगन ने कहा, ‘हमने कहीं भी यह नहीं कहा है कि किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी जाएगी। राज्य और यहां तक कि स्कूल भी तय कर सकते हैं कि कौन सी भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। वे यह तय कर सकते हैं कि अंग्रेजी के साथ मातृभाषा पढ़ाई जाएगी या कोई दूसरी भाषा। इसी लचीलेपन का प्रस्ताव हम कर रहे हैं। तमिलनाडु के पास यह सहूलियत है कि वह तमिल, अंग्रेजी, फ्रेंच या उड़िया भाषा की शिक्षा स्कूलों में दे सकता है।

कमिटी अध्यक्ष ने कहा, शिक्षा नीति पर भ्रम के हालात बन गए

शिक्षा नीति पर हुए विरोध को भ्रामक बताते हुए कमिटी अध्यक्ष ने कहा कि इस रिपोर्ट के पहले प्रारूप में एक पैराग्राफ था, जिससे दुर्भाग्य से कुछ भ्रम पैदा हुआ और उसकी व्याख्या इस तरह की गई कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी सिखाने का दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सभी तरह के असमंजस को दूर करने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा, ‘यह भ्रम दूर करने के लिए हमने दूसरा प्रारूप पेश किया है। इसे कमिटी ने मंजूरी दी है। इसमें हमारी सोच ज्यादा साफ तरीके से दिख रही है।

नई शिक्षा नीति का उद्देश्य कई भाषाओं को बढ़ावा देना

नई शिक्षा नीति का क्या संदेश है और किन उद्देश्यों पर बनाई गई पूछने पर उन्होंने कहा, ‘हमारा संदेश कई भाषाओं को बढ़ावा देने पर है, जिसकी दुर्भाग्य से हिंदी पर जोर देने के रूप में गलत व्याख्या कर दी गई। कई भाषाओं को बढ़ावा देना भारतीय व्यवस्था की एक अहम खासियत है। हमने तो यह कहा है कि प्री-स्कूल लेवल से ही बच्चों का परिचय तीन या इससे ज्यादा भाषाओं से कराया जानना चाहिए क्योंकि उनमें उस उम्र में भाषाएं सीखने की बहुत अधिक क्षमता होती है।

अंग्रेजी को बताया संवाद की शक्तिशाली भाषा

अंग्रेजी को कमतर मानने के आरोपों को नकारते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी को कमतर मानने की सोच नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम यह जानते हैं कि यह संवाद के लिए एक शक्तिशाली भाषा है। हमने अपनी नीति में इसे 2 वजहों से बनाए रखा। एक तो यह कि विज्ञान और विभिन्न प्रफेशनल विषयों में पढ़ाई अंग्रेजी में होती है। दूसरी वजह यह है कि इस भाषा के जरिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से दमदार संबंध बनता है। हालांकि, हमने भारतीय भाषाओं की क्षमता पर भी जोर दिया है। विज्ञान को अंग्रेजी में सीखें, लेकिन उस बात को अभिव्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषाएं बेहतर माध्यम हो सकती हैं।

भारतीय मूल्यों पर जोर देने की बात कही

भारतीय मूल्यों पर जोर देने की बात करते हुए डॉक्टर कस्तूरीरंगन ने कहा, ‘भारत एक अनोखी सभ्यता है। यहां नालंदा और तक्षशिला ने लाखों लोगों को ज्ञान दिया और दुनियाभर से विद्वान लोग यहां आए। कई दूसरे देशों को यह हैसियत हासिल नहीं थी। हालांकि हमारा मानना है कि आजकल के अधिकतर भारतीय विद्यार्थियों में गर्व की वह भावना नहीं है और वे भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्धि से परिचित नहीं हैं। हमारी अर्थव्यवस्था एक लाख करोड़ डॉलर की होने जा रही है। अगला सवाल यह उठेगा कि मैं कौन हूं, इस दुनिया में मेरी पोजिशन क्या है? उन्हें यह समझना चाहिए कि वे एक समृद्ध परंपरा से जुड़े हैं और उन्हें इसकी कुछ जानकारी भी होनी चाहिए। इसलिए ही इस पॉलिसी में इस पर जोर दिया गया है।