सोनम ने सनसनी फैला दी… सिर्फ कुछ दिनों के लिए… कुछ भी नया नहीं लेकिन अभी तो सनसनीखेज ही है… सब भूल जाएंगे… कुछ दिन बाद नया मामला आ जाएगा… बरसों से यही तो हो रहा है… कभी तंदूर में जलाई गई… कभी दिल्ली की सडक़ों पर इज्जत तार-तार की गई… कभी पचमढ़ी की खाइयों में फेंक दिया…. कभी दीवार में जड़ दिया और चुनाई कर दी… क्या कुछ नहीं देखा और सुना… फिर यह सोनम कांड क्या…. सिर्फ सनसनी… कितना सच और कितना झूठ… कितनी बात गले उतर रहीं… कितनी गले में फंस रही… गुनाह हुआ लेकिन किसी ने कबूला नहीं… तार नहीं जुड़ रहे… पति का कत्ल, नया तो नहीं… प्रेम संबंध नया तो नहीं… दुकान के नौकर से प्रेम, नया तो नहीं… जवानी के बिगड़े कदम… परवरिश की कमी… संस्कारों की कमी… विपरीत सैक्स के प्रति आकर्षण…
ये बुदबुदाते शब्द इंदौर से शिलॉन्ग तक ही नहीं, पूरे देश में सुनाई दे रहे हैं। अपराधों की रिपोर्टिंग के दौरान ऐसे कई प्रकरण सामने आए, जिनमें रिश्तों का कत्ल देखा गया। पवित्रता को मटियामेट करते देखा गया। कभी पैसों के लालच में, तो कभी सपनों के राजकुमार के चक्कर में। कहीं लंबे प्लान के बाद हत्या तो कभी क्षणिक विवाद में। कभी सुपारी देकर तो कभी खुद मौत की नींद सुला दिया। मुल्जिम से मुजरिम तक की यात्रा में कई रहस्य जुड़ते हैं, उभरते हैं और अस्त हो जाते हैं। मोटे तौर पर किसने किया, क्यों किया, कैसे किया… जैसे सवालों के ही जवाब मिल पाते हैं। गहराई तक नहीं पहुंच पाते। मुख्य कारण क्या रहा, कैसी मानसिकता थी, क्यों थी, पहले किसी को आभास क्यों नहीं हुआ, जैसे सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं।
सोनम रघुवंशी… आखिर हुआ क्या… बोलती क्यों नहीं… राजा रघुवंशी में क्या कमी थी… बोल सकती थी, जब रिश्ता तय हो रहा था। मुझे नहीं करना इससे शादी…, जब उसे शिलॉन्ग ले जाकर खाई में धक्का देने की हिम्मत आ गई, तो क्या जिन्होंने पाला-पोसा-बढ़ा किया, उनसे मना करने की हिम्मत नहीं थी…, तुम्हे बोलना ही पड़ेगा। तुम्हारी चुप्पी तमाम लड़कियों के लिए सवाल है, और तमाम लडक़ों के लिए डर। क्या अब हनीमून मनाने चलने के लिए लड़कियां अपने पति से जिद कर पाएंगी…, यदि कर भी ली तो पति और उसके परिजन उस जिद पर शंका नहीं करेंगे…। हंसकर ही सही, कह देंगे- अरे हनीमून छोड़ो, घर पर हनुमान चालीसा पढ़ लो।
सनसनी सोनम… बोलो, राज से तुम्हारे क्या रिश्ते हैं? राज बोलो, जिसे तुम दीदी बता रहे हो, उसकी सच्चाई क्या है? आकाश, विशाल, आनंद तुम तीनों भी कठघरे में हो। बताओ, तुम शिलॉन्ग क्यों गए थे? किसने बुलाया था, क्यों बुलाया था, कितने पैसे में सौदा हुआ, तुम्हारा रोल क्या रहा? क्या तुम लोगों ने चंद पैसों की खातिर अपनी और अपने परिजनों की जिंदगी को बदनामी की खाई में नहीं धकेल दिया? मां रो रही है, मेरा बेटा ऐसा नहीं कर सकता। बहन कह रही है, मेरा भाई ऐसा नहीं है। तो सच क्या है? पुलिस को कोई तो सुराग मिला होगा? गाहे-बेगाहे पुलिस ऐसे ही किसी को उठा तो नहीं लेगी? सोनम के माता-पिता और भाई भी यही कह रहे हैं कि वह ऐसा नहीं कर सकती।
सोनम सनसनी… बताओ, एक युवक की जान की कीमत क्या होती है? राजा की जान क्यों ली? उसे पसंद करना या न करना, कोई मजबूरी नहीं थी। उससे बोल देती तो शायद वह तुम्हें खुशी-खुशी अपनी जिंदगी से अलग कर देता, लेकिन तुमने तो उसकी जिंदगी की खत्म कर दी। क्या ऐसी ही परवरिश थी तुम्हारी, क्या शादी के पहले तुम राज नहीं खोल सकती थी, राज को राज बनाकर क्यों रखा? माता-पिता और भाई के साथ पूरे समाज को बुरा बना दिया। उन बेकसूरों को तुम्हारे इरादे का अंदाजा होता तो शायद राजा की जिंदगी बच जाती। तुम्हें पता है, इस समय तुम्हें लोग क्या-क्या तमगे दे रहे हैं, किस भाषा से नवाज रहे हैं? जिस सिंदूर की पूजा की जाती है, उसे तुमने मिट्टी में मिला दिया। क्या तुम मानती हो कि यह सब करने से तुम्हारी मुराद पूरी हो गई…, क्या अब राजा की जगह राज ले लेगा? तुम सिर्फ सनसनी बनकर रह गई हो। पूरा देश और समाज इस घटना के बाद शायद यही कह रहा है- हमें ऐसी बेटी मत देना।
(भगवान उपाध्याय की फेसबुक वाल से साभार)
लेखक मध्य प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार हैं.

कर्नाटक की राजधानी बंग्लुरू में समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो के रूप में कार्यरत श्वेता यादव ने नई दिल्ली के एक ख्यातिलब्ध मास कम्यूनिकेशन इंस्टीट्यूट से पोस्ट ग्रेजुएशन की उपाधि लेने के बाद वे पिछले लगभग 15 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं.
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