प्रयागराज: तीर्थों का राजा और उसके रंगीन झंडे
(एल.एन. सिंह)
प्रयागराज (साई)। प्रयागराज, त्रिवेणी संगम के तट पर बसा एक पवित्र शहर है। यहां के तीर्थ पुरोहितों (पंडों) का इतिहास बेहद पुराना है। ये पुरोहित अपने विशिष्ट झंडों के लिए जाने जाते हैं, जिनका इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि प्रयागराज शहर का।
तीर्थयात्रियों का राजा
प्राचीन काल से ही प्रयागराज को तीर्थयात्रियों का राजा माना जाता रहा है। यहां लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पवित्र जल में अस्थियां विसर्जित करते हैं। इस पवित्र कार्य के लिए वे तीर्थ पुरोहितों की सेवा लेते हैं।
झंडों का महत्व
तीर्थ पुरोहितों के ये झंडे न केवल उनकी पहचान हैं, बल्कि दूर से ही उन्हें पहचानने में भी मदद करते हैं। इन झंडों पर विभिन्न प्रकार के चिन्ह बनाए जाते हैं जैसे हाथी, घोड़ा, मछली, कुल्हाड़ी, राधाकृष्ण, पान का पत्ता, आदि। इन चिन्हों का अपना अलग महत्व होता है और ये तीर्थ पुरोहित के परिवार और उसके पूर्वजों से जुड़े होते हैं।
झंडों का वर्गीकरण
इन झंडों का वर्गीकरण प्रयागवाल समुदाय के लोग करते हैं। वे इन झंडों को विभिन्न श्रेणियों में बांटते हैं और हर श्रेणी का अपना महत्व होता है।
हाई लाईट्स
प्रयागराज के तीर्थ पुरोहितों के झंडे न केवल उनकी पहचान हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी एक अहम हिस्सा हैं। ये झंडे सदियों से चली आ रही परंपराओं को जीवंत रखते हैं और प्रयागराज की धार्मिक विरासत को समृद्ध बनाते हैं।

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से मानसेवी तौर पर जुड़े हुए मनोज राव देश के अनेक शहरों में अपनी पहचान बना चुके हैं . . .
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