(प्रीति भोसले)
महाकुंभ नगर (साई)। महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक समागम, सिर्फ एक मेला नहीं है, बल्कि एक ऐसी घटना है जो विज्ञान, दर्शन और आध्यात्म को एक साथ जोड़ती है। हजारों साल पहले आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित, यह मेला ग्रहों की एक खास स्थिति में आयोजित किया जाता है।
विज्ञान और सनातन धर्म का संगम
आज जब हम आधुनिक विज्ञान और तकनीक के युग में जी रहे हैं, तब भी महाकुंभ की प्रासंगिकता बनी हुई है। आधुनिक खगोलविदों ने पुष्टि की है कि महाकुंभ के आयोजन के समय ग्रहों की स्थिति वैसी ही होती है जैसी हजारों साल पहले शंकराचार्य ने निर्धारित की थी। यह तथ्य सनातन धर्म के वैज्ञानिक पक्ष को उजागर करता है।
जब पश्चिम में गैलीलियो को पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने का दावा करने के लिए सताया जा रहा था, तब भारत में सनातन धर्म के विद्वान ग्रहों की गति और उनके प्रभाव का गहन अध्ययन कर रहे थे। यह दर्शाता है कि भारत में विज्ञान हमेशा से ही आध्यात्म के साथ जुड़ा रहा है।
महाकुंभ का वैश्विक आकर्षण
महाकुंभ सिर्फ भारत के लोगों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करता है। इसका कारण यह है कि:
आध्यात्मिक खोज: लोग यहां आध्यात्मिक शांति और ज्ञान की तलाश में आते हैं।
सांस्कृतिक विरासत: महाकुंभ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।
वैज्ञानिक जिज्ञासा: विज्ञान के प्रति रुचि रखने वाले लोग यहां ग्रहों की गति और उनके प्रभाव के बारे में जानने के लिए आते हैं।
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ हमें सिखाता है कि विज्ञान और आध्यात्म एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं, बल्कि एक दूसरे को पूरक करते हैं। यह हमें जीवन के गहन सवालों के जवाब खोजने में मदद करता है। महाकुंभ एक ऐसा मंच है जहां लोग विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लोगों से मिलते हैं और एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक समागम नहीं है, बल्कि यह मानव सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें हमारे अतीत से जोड़ता है और हमें भविष्य की ओर ले जाता है।
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