आजादी के 70 साल बाद भी जातिगत भेदभाव जारी रहना दुर्भाग्यपूर्ण
(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। सुप्रीम कोर्ट ने देश में सीवर नालों की हाथ से सफाई के दौरान लोगों की मौत होने पर बुधवार को गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि दुनिया में कहीं भी लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में नहीं भेजा जाता है।
कोर्ट ने इसे असभ्य और अमानवीय स्थिति बताया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी एजेंसियों पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी जातिगत भेदभाव अभी भी समाज में जारी है। मैनहोल, नालियों, सीवर की सफाई करने वाले लोग मास्क, ऑक्सिजन सिलिंडर नहीं पहनने के कारण मर रहे हैं।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता और जस्टिस एम. आर. शाह व जस्टिस बी. आर. गवई की सदस्यता वाली बेंच ने यह टिप्पणी केंद्र की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। दरअल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से 2018 के अपने एक फैसले को वापस लेने की मांग की है, जिसमें एससी/एसटी अधिनियम के तहत दायर एक शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी के कठोर प्रावधानों और आरोपियों के लिए कोई अग्रिम जमानत नहीं दी थी। बेंच ने केंद्र की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि यहां सीवर सफाईकर्मी हर रोज मर रहे हैं और उन्हें कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की जा रही है। इसके बावजूद संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, जो सफाईकर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने में लापरवाही बरतते है। बेंच ने सरकार से पूछा, ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए आपने क्या किया है? किसी भी अन्य देश में लोग बिना सुरक्षात्मक यंत्र के मैनहोल में प्रवेश नहीं करते हैं। आपने इसके बारे में क्या किया है?’
कोर्ट ने कहा कि आजादी के 70 सालों बाद भी समाज में छुआछूत की भावना मौजूद है। बेंच ने कहा कि इस देश में छूआछूत का अब भी चलन है क्योंकि कोई भी इस तरह की सफाई गतिविधियों में शामिल लोगों के साथ नहीं रहना चाहता है। बेंच ने कहा कि स्थितियों में सुधार किया जाना चाहिए।