मौत की सजा पाए दोषी जब चाहे तब इसे चुनौती नहीं दे सकते: सुप्रीम कोर्ट

 

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्‍ली (साई)। कानूनी दांवपेच की वजह से निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी में हो रही देरी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बहुत ही अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा का अंजाम तक पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि मौत की सजा ओपन एंडेडहै और इसकी सजा पाए कैदी हर समय इसको चुनौती दे सकते हैं। दूसरी तरफ गुरुवार को ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के बाद दोषियों को 7 दिन में फांसी के लिए गाइडलाइन तय करने की मांग वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की गुजारिश की।

जजों का समाज और पीड़ितों के प्रति भी कर्तव्य: SC

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब निर्भया गैंगरेप और मर्डर केस के 4 दोषी एक के बाद एक याचिका दायर कर रहे हैं जिससे उनकी फांसी में देरी हो रही है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह कानून के हिसाब से होना चाहिए और जजों का समाज व पीड़ितों के प्रति भी कर्तव्य है कि वे न्याय करें।

एक प्रेमी जोड़े की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी

सीजेआई एस. ए. बोबडे, जस्टिस एस. ए. नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने ये टिप्पणियां मौत की सजा पाए एक प्रेमी जोड़े की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान की। यह मामला यूपी में 2008 में एक ही परिवार के 7 लोगों की हत्या से जुड़ा है। परिवार की एक युवती का प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता, 2 भाईयों और भाभियों के साथ-साथ अपने 10 महीने के भतीजे की हत्या कर दी थी। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रेमी जोड़े को मौत की सजा पर मुहर लगाई थी।

सजा-ए-मौत का अंजाम महत्वपूर्ण: SC

7 परिजनों की हत्या के जुर्म में मौत की सजा पाए प्रेमी जोड़े की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, ‘कोई हर चीज के लिए हमेशा नहीं लड़ता रह सकता। सजा-ए-मौत का अंजाम बहुत महत्वपूर्ण है और इसकी सजा पाए कैदियों को इस भ्रम में नहीं रहता चाहिए कि फांसी की सजा ओपन एंडेड है और वे इस पर हर समय सवाल उठा सकते हैं।

दोषियों के वकील ने दी सुधरने के लिए मौकादेने की दलील

कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब सीनियर ऐडवोकेट आनंद ग्रोवर और मीनाक्षी अरोरा ने यह कहते हुए शबनम और उसके प्रेमी सलीम की मौत की फांसी की सजा माफ करने की दलील दी कि उन्हें सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए। इसका सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कड़ा विरोध किया। यूपी सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए मेहता ने कहा, ‘अपने मां-बाप को मारकर दोषी दया की गुहार कर रहा है कि अब वह अनाथ हो गया है!

रोंगटे खड़े करने वाला गुनाह, पूरे परिवार की एक साथ हत्या

बेंच ने टिप्पणी की कि हर अपराधी के बारे में कहा जाता है कि वह दिल से निर्दोष है लेकिन हमें उसके द्वारा किए गए गुनाह पर भी गौर करना होगा। शीर्ष अदालत ने 15 अप्रैल , 2008 को हुए इस अपराध के लिए सलीम और शबनम की मौत की सजा 2015 में बरकरार रखी थी। दोनों मुजरिमों को निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी जिसे 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरकरार रखा था। सलीम और शबनम का प्रेम प्रसंग चल रहा था और वे शादी करना चाहते थे लेकिन महिला का परिवार इसका विरोध कर रहा था। यूपी के अमरोहा जिले में 15 अप्रैल, 2008 को महिला के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई। शुरुआती जांच पड़ताल में महिला ने यही जताया कि अज्ञात हमलावरों ने उसके परिवार पर हमला किया था। लेकिन जांच के दौरान पता चला कि शबनम ने ही सलीम को यह अपराध करने के लिए उकसाया था। इस अपराध से पहले शबनम ने परिवार के सदस्यों के दूध में नशीला पदार्थ मिला दिया था। इसके बाद खुद उसने अपने नन्हें मासूम भतीजे का गला घोंट दिया था।