. . . इसलिए नहीं मिल पाते चोरी गए मोबाईल!

 

 

 

 

सारा खेल आईएमईआई नंबर का है होता

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्ली (साई)। मोबाइल चोरी होने की घटनाएं सबसे आम अपराधों में से एक हैं और कई यूजर्स तो ऐसे मामलों को पुलिस में रिपोर्ट तक नहीं करते।

वहीं, ज्यादातर की शिकायत यह रहती है कि पुलिस में मोबाइल चोरी होने का मामला दर्ज करवाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती और उनका डिवाइस वापस नहीं मिलता। दरअसल, हर डिवाइस की पहचान उसका आईएमईआई नंबर होता है। सामने यही सवाल आता है कि आईएमईआई नंबर की मदद से पुलिस डिवाइस ट्रेस क्यों नहीं करती या नहीं कर पाती। आईएमईआई नंबर के साथ फोन चुराने वाले बड़ा खेल करते हैं, जिससे उन्हें पकड़ा न जा सके।

चोरी किए गए स्मार्टफोन्स का आईएमईआई नंबर ही बदल दिया जाता है, जिससे इन्हें ट्रेस किया जा सके। एक बार आईएमईआई नंबर बदल जाए तो डिवाइस को मार्केट में बेच दिया जाता है। इसके अलावा कई मामलों में डिवाइस को डिस्मेंटल करके पार्ट्स इस्तेमाल कर लिए जाते हैं। ऐसे मामलों में स्मार्टफोन ऐक्टिवेट न होने के चलते सिस्टम उसे ट्रेस नहीं कर पाता। आईएमईआई नंबर या इंटरनैशनल मोबाइल इक्विपमेंट आइडेंटिटी 15 अंकों का यूनीक नंबर होता है। यह किसी इंसान के फिंगरप्रिंट की तरह होता है, यानी कि हर डिवाइस की अलग पहचान होता है।

500-700 रूपए है कीमत : लंबे वक्त तक माना जाता रहा कि डिवाइस के आईएमईआई नंबर से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती या इसे बदला नहीं जा सकता और यह पूरी तरह सुरक्षित है। हालांकि, ऐसा नहीं है और ग्रे मार्केट में उपलब्ध कई सॉफ्टवेयर्स की मदद से पांच मिनट में ही हैकर्स चोरी किए गए मोबाइल की पहचान या आईएमईआई बदल देते हैं।

कर्नाटक के हुबली में मोबाइल शोरूम ओनर जगदीश ठाकुर ने बताया कि मार्केट में मिलने वाले किसी भी डिवाइस का आईएमईआई बदला जा सकता है और इसके बाद यह फोन नया हो जाता है। ऐसी स्थिति में ओरिजनल आईएमईआई नंबर को ट्रेस नहीं किया जा सकता।

ऐसे बदला जाता है आईएमईआई : चोरी किए गए डिवाइस का सबसे पहले पैटर्न या पिन अनलॉक करना होता है। इसके बाद सॉफ्टवेयर की मदद से आईएमईआई नंबर बदल दिया जाता है और इसके लिए हैकर्स 500 से 700 रुपये के बीच की रकम लेते हैं।

हालांकि, प्रीमियम और हाई-ऐंड स्मार्टफोन्स का आईएमईआई नंबर बदलना आसान नहीं होता। हैकर्स आईएमईआई नंबर बदलने के लिए आम तौर पर फ्लैशर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि ये सॉफ्टवेयर ज्यादा मंहगा नहीं होता। अलग-अलग मोबाइल कंपनियों के हैंडसेट के लिए अलग सॉफ्टवेयर्स का यूज किया जाता है।