47 वर्षों बाद मिली दो बहनें

 

1973 में देखा था एक-दूसरे को आखिरी बार

(ब्यूरो कार्यालय)

नई दिल्‍ली (साई)। पिछले हफ्ते 98 साल की बन सेन, अपनी 101 वर्षीय बहन बन चिया और 92 वर्षीय भाई से मिलीं। दोनों बहनों की आंखें नम थीं। क्योंकि यह मुलाकात 47 वर्षों बाद हो रही थी। वक्त ने उन्हें इतना दूर कर दिया था कि दोनों को लगता था उनमें से किसी एक मौत हो गई होगी। उन्होंने आखिरी बार एक-दूसरे को साल 1973 में देखा था। कंबोडिया में पोल पॉट के नेतृत्व वाली खमेर रूज (कंबोडिया की कम्यूनिस्ट पार्टी) के सत्ता में आने के ठीक दो साल पहले। खेमर रूज के शासन काल (1975-1979) में लगभग 20 लाख लोगों की मौत हुई थी।

कैसे मिली दोनों बहनें?

बन को मिलाने के लिए स्थानीय एनजीओ चिल्ड्रन्स फंडने 2004 में पहल की थी। एनजीओ को बन का भाई और बड़ी बहन पिछले हफ्ते एक गांव में मिल गए, जिसके चलते आधी सदी के बाद भी इन भाई-बहनों की मुलाकात संभव हो सकी।

जीने के लिए उठाया कचरा

रिपोर्ट के मुताबिक, पोल पॉट के शासन में बन सेन ने अपने पति खोया। लंबे समय तक उन्होंने कचरा बीना ताकि पेट भर सकें। इसके अलावा गरीब पड़ोसियों के बच्चों की देखभाल भी की। वह बताती हैं, ‘मैंने बहुत पहले अपना गांव छोड़ दिया था। दोबारा कभी पलट कर नहीं देखा। मुझे लगाता था कि मेरी बहन और भाई मर चुके हैं।

पहली बार भाई ने छुआ हाथ

बन सन, अपनी बड़ी बहन से दोबार मिलकर बहुत खुश हैं। वह कहती हैं, ‘यह पहली बार है जब मेरे छोटे भाई ने मेरा हाथ छुआ है।इस पल से वह इतनी खुश थी कि उनकी आंखें भर आईं।

लगता था खो दिया बहन को

वहीं, बन चिया के पति को भी खेमर रूज द्वारा मार दिया गया था। वो 12 बच्चों के साथ विधवा की तरह जी रही थीं। उन्हें भी लगता था कि उनकी छोटी बहन मर चुकी है। वो बताती हैं, ‘हमारे 13 रिश्तेदारों को पोल पॉट द्वारा मारा गया। हमें यही लगा कि बन सेन भी उनके साथ मारी जा चुकी होगी।

सोचा था नहीं मिलेंगे दोबारा

अब दोनों बहने ज्यादा से ज्यादा वक्त साथ में बिता रही हैं। बन चिया कहती हैं, ‘हम उसके बारे में बात करते थे। लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि उसे दोबारा देखेंगे।

क्या है खमेर रूज?

तानाशाह पोल पॉट और उसकी सेना ने 1975 में कंबोडिया की सत्ता संभाली थी। 1976 में नई कम्यूनिस्ट सरकार के पोल प्रधानमंत्री बने। पॉट के कार्यकाल को खमेर रूजके नाम से जाना जाता है। कंबोडिया में खमेर रूज का शासन चार साल चला। इस दौरान वहां हुई हत्याओं को 20वीं सदी के सबसे बड़े नरसंहारों में गिना जाता है।