(ब्यूरो कार्यालय)
नई दिल्ली (साई)। शीला दीक्षित एक सौम्य, विनम्र और खुशमिजाज शख्सियत की मालकिन थीं। लेकिन उन्हें कड़े फैसलों के लिए जाना जाता था। प्रशासन पर उनकी बेहद मजबूत पकड़ थी। दिल्ली की सबसे ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने पूर्ण राज्य की मांग, जमीन विवाद और लॉ ऐंड ऑर्डर जैसे केंद्र और राज्य के बीच टकराव वाले मुद्दों से बड़े ही सूझबूझ से हैंडल किया।
शीला दीक्षित के कार्यकाल में केंद्र बनाम राज्य का टकराव कभी मुद्दा नहीं बना, बल्कि आज तो दिल्ली में अक्सर ‘सीएम बनाम एलजी‘ का मुद्दा जब तब सुर्खियों में छाया रहता है। 1998 में जब वह सुषमा स्वराज सरकार को चुनाव में हराकर दिल्ली की सत्ता में आईं, उस वक्त केंद्र में बीजेपी की अगुआई में सरकार थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से उनके आत्मीय संबंध थे और उन्होंने संभावित टकराव वाले मुद्दों से बड़े करीने से हल किया।
जब शीला सत्ता में आईं, उसी साल दिल्ली मेट्रो की पहली लाइन का शिलान्यास हुआ था। इसके फौरन बाद ही दिल्ली में शीला मुख्यमंत्री बन गईं, लेकिन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उन्होंने इस प्रॉजेक्ट में किसी तरह की अड़चन नहीं आने दीं। हालांकि जब मेट्रो प्रॉजेक्ट का 8.3 किमी का पहला चरण पूरा होने वाला था, उसी वक्त उनके धुरविरोधी मदनलाल खुराना को दिल्ली मेट्रो का चेयरमैन बना दिया गया। लेकिन शीला दीक्षित ने उनका विरोध करने की बजाए इस तरह से काम किया कि उस वक्त की वाजपेयी सरकार भी उनकी मुरीद बन गई।
दिल्ली के पूर्व ट्रांसपोर्ट सेक्रटरी आर. के. वर्मा एक वाकया बताते हैं। केंद्र में यूपीए की सरकार थी और उसने कॉमनवेल्थ गेम्स से ठीक पहले दिल्ली के कई सीनियर आईएएस अफसरों का तबादला कर दिया, जबकि सामने गेम्स को लेकर टाइट डेडलाइंस थीं। वर्मा याद करते हैं, ‘तब शीला तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम से मिलीं। बाद में गृह मंत्री को अपने आदेश रद्द करने पड़े।‘
दिल्ली की सियासत में उनका सफर काफी दिलचस्प रहा। यूपी के उन्नाव की इस बहू को जब कांग्रेस आलाकमान ने 1998 में दिल्ली की कमान सौंपी तो उन्हें बाहरी के रूप में देखा गया। जब कुछ ही महीनों बाद वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गईं जिससे पार्टी के भीतर ही उनके कई प्रतिद्वंद्वी तैयार हो गए।
उस समय दिल्ली कांग्रेस में आपसी खींचतान चरम पर पहुंच गई। विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर चौधरी प्रेम सिंह, एमसीडी में स्टैंडिंग कमिटी के तत्कालीन चेयरमैन राम बाबू शर्मा और पार्टी नेता सुभाष चोपड़ा उनके खिलाफ थे। हालांकि, समय के साथ शीला ने पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही विपक्ष को मात दी।
शीला कैबिनेट का हिस्सा रहे अरविंदर सिंह लवली बताते हैं, ‘पार्टी के बुजुर्ग नेता उन्हें नापसंद कर रहे थे लेकिन युवा ब्रिगेड उनके साथ थी। अपने काम करने के अंदाज से उन्होंने पार्टी के साथ-साथ विपक्ष के लोगों का भी दिल जीत लिया। उनका व्यक्तित्व आकर्षक था और सबसे बहुत प्यार से पेश आती थी। लोग भी उन्हें काफी सम्मान देते थे।‘

समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं.
अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.