लिमटी की लालटेन 112
(लिमटी खरे)
वैसे तो बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने अपनी आमद देश में दे दी थी। उस दौर में मोबाईल पर शार्ट मैसेज सर्विस अर्थात एसएमएस का जमाना था। लोग एक दूसरे को जमकर मैसेज भेजा करते थे। इक्कीसवीं सदी आते ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म को मजबूती मिलना आरंभ हुई। आरकुट जैसे प्लेटफार्म शुरूआत में लोकप्रिय हुए पर जल्द ही इसने दम तोड़ दिया। इसके बाद फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्विटर, टेलीग्राम आदि न जाने कितने प्लेटफार्म आज अस्तित्व में हैं।
फेसबुक और व्हाट्सऐप आज सबसे ज्यादा लोकप्रिय माने जा रहे हैं। इन प्लेटफार्मस के लाभ हैं तो इनकी हानियां भी बहुत ही ज्यादा नजर आ रहीं हैं। सामाजिक रूप से घृणा का वातावरण तैयार करने के मामले में फेसबुक के कथित तौर पर भेदभाव पूर्ण रवैए को लेकर दुनिया के चौधरी अमरीका के वाल स्ट्रीट जनरल अखबार के द्वारा जिस तरह का खुलासा किया गया है वह आश्चर्य जनक ही माना जाएगा। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब फेसबुक विवादों में आया हो। इसके पहले अमेरिका में ही ब्लैक लाईव्स मैटर आंदोलन के समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा दिए गए कथित भड़काऊ बयानों पर फेसबुक और ट्विटर के अंतर को लेकर काफी वााद विवाद हो चुका है। इसके पहले इसके डाटा के दुरूपयोग यहां तक कि चुनावों में इनका उपयोग करने के आरोप भी कई बार लग चुके हैं। देश में सियासी अखाड़े में इस तरह के आरोप प्रत्यारोपों का यह संभवतः पहला मामला हो सकता है।
अखबार वाल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट पर अगर गौर फरमाया जाए तो इसमें साफ तौर पर यह कहा गया है कि हाल ही में बने तेलंगाना राज्य के भाजपा के विधायक टी. राजा सिंह के द्वारा फेसबुक पर कथित तौर पर नफरत फैलाने वाली पोस्ट साझा की, पर इस मामले में फेसबुक ने मौर साधे रखा गया। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि इस तरह अगर भाजपा नेताओं की पोस्ट को हटाया जाएगा तो फेसबुक के व्यापारिक हित प्रभावित हो सकते हैं। इस रिपोर्ट के उपरांत कांग्रेस और भाजपा के बीच बयानबाजी जमकर आरंभ हो चुकी है।
सत्तारूढ़ भाजपा के केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के द्वारा कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी को लूजर बतकर इस मामले का पटाक्षेप करने का प्रयास किया गया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि अमेरिका के इस अखबार के द्वारा जिस बात को रेखांकित किया गया है वह कांग्रेस या राहुल गांधी के लिए चिंताजनक नहीं माना जा सकता है। इसका दायरा बहुत ही विस्त्रत है, इसलिए इसे व्यापक दृष्टिकोण को लेकर देखा जाना चाहिए।
देश में आज सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर की पहुंच जिस तरह गांव गांव हो चुकी है उस लिहाज से इन कंपनीज के लिए भारत बहुत ही बड़ा बाजार के रूप में उभर चुका है। इस तरह के प्लेटफार्मस पर अगर विवादित चीजों को इस तरह ही हवा दी जाती रही तो इससे भारतीय लोकतंत्र को होने वाले संभावित नुकसान की कल्पना कर सरकार को कदम उठाने ही चाहिए।
सोशल मीडिया का संचालन करने वाली कंपनीज देश में किस तरह से कितना राजस्व संग्रहण कर रही हैं, इस बारे में भी पारदर्शिता बहुत ही जरूरी है। इसके पीछे वजह यह है कि कुल कमाई पर आहूत करों का सही सही आंकलन किया जाकर इन कंपनीज के द्वारा सरकारों को कर का भुगतान कर रहीं हैं अथवा नहीं! आम आदमी अपनी जानकारियां इन कंपनीज को दे देता है। आप अगर आज इसमें किसी प्रोडक्ट को सर्च करें तो आने वाले समय में आपकी स्क्रीन पर उस तरह के या मिलते जुलते प्रोडक्ट्स ही नजर आएंगे! इसे क्या माना जाए! हर घर में पहुंच वाली इन सेवाओं से भारतीय समाज में नैतिकता का क्षरण तो नहीं हो रहा है इस बारे में भी विचार करना बहुत ही जरूरी है।
देखा जाए तो हेट स्पीच और समाज के लिए नुकसानदेह सामग्रियों को प्लेटफार्म से हटाने के लिए फेसबुक के पास एक प्रथक से विभाग और अमला है। इसका काम ही इस तरह की सामग्रियों को चिन्हित करते हुए उन्हें हटाने का है। हर एक सेकंड में आधा दर्जन नए यूजर्स इससे जुड़ते हैं तो आप इसकी पहुंच का अंदाजा लगा सकते हैं। फेसबुक को अन्य कारोबारी कंपनीज की तरह ही देखा जाना चाहिए और इसके व्यवसायिक हितों को उसी सीमा तक मान्य किया जाना चाहिए जब तक उसकी दज वाले देश कमे आंतरिक मामलों में इससे किसी तरह की बाधा उतपन्न न हो रही है। इसलिए संसदीय समित को भी इस दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत है।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, घर से निकलते समय मास्क का उपयोग जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। हम लिमटी की लालटेन का 113वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)
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