दीपावली मनाए जाने के पौराणिक, ऐतिहासिक और अन्य कारणों को जानिए . . .

जानिए क्या क्या विशेष घटनाएं घटी हैं युगों युगों से कार्तिक माह की अमावस्या को . . .
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सनातन धर्म सहित सभी धर्म के लोगों को दीपों का पर्व अर्थात दीवाली का इंतजार साल भर रहता है। सनातन धर्म के लोग इस दिन माता लक्ष्मी, माता सरस्वती एवं भगवान श्री गणेश का पूजन अर्चन करते हैं। इसके अलावा दीवाली पर घरों में साफ सफाई, रंग रोगन किया जाता है। पकवान बनाए जाते हैं, फटाखे, नए वस्त्र आदि खरीदे जाते हैं। धनतेरस से पांच दिनों के दीवाली महोत्सव में खरीददारी भी जमकर की जाती है। इस सबसे बाजार में व्यापारिक गतिविधियां तेज हो जाती हैं, जिसके चलते सभी की आय में बढ़ोत्तरी भी दर्ज की जाती है। आईए आज हम आपको दीवाली मनाए जाने के पौराणिक, ऐतिहासिक एवं अन्य कारणों से आवगत कराते हैं,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
त्रेतायुग में भगवान श्री राम जब लंकापति अधर्मी रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे तब उनके आगमन पर अयोध्या के निवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियां मनाई गईं।
कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी जब मुगल बादशाह जहांगीर की कैद से आजाद होकर अमृतसर वापस लौटे थे, तब खुशियां मनाई गईं थीं, यह दीवाली का ही अवसर था।
भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया था। इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुल वासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।
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राक्षसों का वध करने के लिए मां देवी ने महाकाली का रूप धारण किया। राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के समर्थकों एवं अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के स्वागत में हजारों लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक दीपावली के दिन हुआ था। इसलिए दीप जलाकर खुशियां मनाई गईं।
चौथी शताब्दी में रचित कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अवसर पर मंदिरों और नदी के किनारे घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप जलाए जाते थे।
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का निर्माण भी दीपावली के ही दिन शुरू हुआ था।
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर जी ने भी दीपावली के दिन ही बिहार के पावापुरी में अपना शरीर त्याग दिया। महावीर निर्वाण संवत इसके दूसरे दिन से शुरू होता है। इसलिए अनेक प्रांतों में इसे वर्ष के आरंभ की शुरुआत मानते हैं। दीपोत्सव का वर्णन प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है। कल्पसूत्र में कहा गया है कि महावीर निर्वाण के साथ जो अन्तर्ज्याेति सदा के लिए बुझ गई है, आओ हम उसकी क्षतिपूर्ति के लिए बहिर्ज्याेति के प्रतीक दीप जलाएं।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगा तट पर स्नान करते समय ओम कहते हुए समाधि ले ली।
महर्षि दयानंद ने भारतीय संस्कृति के महान जन नायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।
दीन ए इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासन काल में दौलत खाने के सामने 40 गज ऊंचे बांस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहांगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे।
मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेते थे।
शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लाल किले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
मोहन जोदड़ो सभ्यता के अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं।
महाप्रतापी तथा दानवीर राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली, तब बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण कर प्रतापी राजा बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में मांगी। महाप्रतापी राजा बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी याचक को निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी। विष्णु ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया, साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएंगे। हरि ओम,
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(साई फीचर्स)