पराली के प्रदूषण से मिलेगी मुक्ति

 

वैज्ञानिकों ने की नई खोज, देश भर में चर्चा

(ब्यूरो कार्यालय)

जबलपुर (साई)। धान की कटाई के बाद खेतों मे बची पराली को जलाने के बजाय अब आधुनिक मशीन से निकाला जा सकेगा। गेहूं की बोवनी में भी आसानी होगी। कृषि विश्वविद्यालय में पिछले कई महीने से हेप्पी सीडर मशीन पर चल रहा ट्रायल सफल रहा। इसका निर्माण पराली सम्भालने वाले रोटर और जीरो टिल ड्रिल तकनीक को मिलाकर किया गया है।

इसमें लगा रोटर पराली को दबाता है, जबकि जीरो टिल ड्रिल गेहूं की बोवनी में मदद करता है। मशीन में विशेष प्रकार के ब्लेड होते हैं, जो पराली को काटकर पीछे धकेलते हैं। इससे मशीन के फाल में पराली नही फंसती और बीज का फैलाव हो जाता है। कृषि विश्वविद्यालय प्रशासन इस मशीन को अब किसानों के बीच ले जाने की तैयारी कर रहा है।

एक दिन में आठ एकड़ में बोवनी : कृषि विवि के कृषि यांत्रिकी विभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ.अविनाश गौतम ने बताया कि मशीन की क्षमता 45 हॉर्स पावर है। इसे ट्रैक्टर से जोडकऱ आसानी से चलाया जा सकता है। इसकी मदद से एक दिन में 6-8 एकड़ में बोवनी की जा सकती है।

जमीन में सूक्ष्म जीवियों की भरमार : मिट्टी में सूक्ष्म जीवियों की भरमार होती है, जो पोषक तत्वों के लिए उपयोगी होते हैं। सूक्ष्म जीव नाइट्रोजन, जिंक, फास्फेट, पोटेशियम की पूर्ति करते हैं। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद राइजोबियम, एजेटो बैक्टर आदि बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।

10 क्विंटल पराली जलाने में 34 किग्रा पोषक तत्व होते हैं नष्ट : कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि 10 क्विंटल पराली जलाने में जमीन और खेती के लिए आवश्यक करीब 34 किलोग्राम पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। यदि इस पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति शक्ति कम हो जाएगी।

कृषि वैज्ञानिकों ने गेहूं की सीधी बोवनी और पराली से निजात दिलाने के लिए हेप्पी सीडर मशीन का निर्माण किया है। इसका कुछ महीनों से ट्रायल किया जा रहा था, जो सफल रहा है। अब हम इसे किसानों के बीच ले जाया जा रहा है।

डॉ. अतुल श्रीवास्तव,

विभागाध्यक्ष,

जेएनकृविवि.