भोपाल की पल्लवी ने अमेरिका में कैंसर के इलाज का तरीका खोजा

 

(ब्यूरो कार्यालय)

भोपाल (साई)। भोपाल की पल्लवी तिवारी इन दिनों अमेरिका के क्लीवलैंड में अपनी टीम के साथ रिसर्च कर रही हैं। उन्होंने ब्रेन कैंसर की दुर्लभ बीमारी के इलाज का नया तरीका ईजाद किया है, जिससे यह पता चल सकेगा कि कैंसर पीड़ित मरीज के इलाज के लिए कौन सी थैरेपी कारगर है। इस तरीके से यह भी पता चल पाएगा कि मरीज के जीवित रहने की कितनी गुंजाइश है। फिलहाल इस रिसर्च पर क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। पल्लवी को शोध की प्रेरणा बीई करते वक्त एक प्रोजेक्ट करते हुए मिली।

ग्लियोब्लास्टोमा नामक ब्रेन कैंसर पर है शोध

अमेरिका के क्लीवलैंड की केस वेस्टर्न रिसर्च यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन, केस स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग तथा क्लीवलैंड क्लीनिक के शोधकर्ता डॉक्टरों ने ब्रेन कैंसर से पीड़ित मरीजों के इलाज के नए तरीके खोजे हैं। क्लीवलैंड को दुनिया का दूसरा सर्वश्रेष्ठ कैंसर रिसर्च हॉस्पिटल माना जाता है।

इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एमआरआई स्कैन तथा जेनोमिक्स के साथ शोधकर्ताओं ने यह तरीका विकसित किया है, जिससे यह पता चल जाएगा कि ग्लियोब्लास्टोमा नामक ब्रेन कैंसर से पीड़ित मरीज के जीवित रहने की कितनी संभावना है और कौन से मरीज ऐसे हो सकते हैं जिन पर क्लिनिकल ड्रग ट्रायल किया जा सकता है। जीनोमिक्स एक विज्ञान है, जिसमें हम आरडीएनए, डीएनए अनुक्रमण तकनीक एवं जैव सूचना विज्ञान का उपयोग करके जीनोम की संरचना, कार्य एवं अनुक्रमण का अध्ययन करते हैं।

ग्लियोब्लास्टोमा बड़ी तेजी से फैलने वाला कैंसर है जो कि ब्रेन कैंसर से पीड़ित मरीजों में से 15 फीसदी मरीजों में पाया जाता है। ग्लियोब्लास्टोमा से पीड़ित मरीज कुछ साल ही जिंदा रह पाते हैं। क्लीवलैंड क्लीनिक के बर्कहार्ट ब्रेन ट्यूमर और न्यूरो-ऑन्कोलॉजी सेंटर में प्रोफेसर और इस शोध के सहलेखक हैं।

एमडी मनमीत अहलूवालिया के मुताबिक, इस रिसर्च का आशय यह है कि ग्लियोब्लास्टोमा से पीड़ित मरीज को यह पता चल सकेगा कि उस पर कीमोथैरेपी असर करेगी या नहीं या फिर उसे इम्येनुथैरेपी (रोग प्रतिरक्षा चिकित्सा) से इलाज कराना पड़ेगा। मरीज की इमेज और उसके जेन प्रोफाइल के आधार पर यह पता चल सकेगा।

इस रिसर्च का नेतृत्व सीडब्ल्यूआरयू के बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर पल्लवी तिवारी और पीएचडी कर रहीं निहा बेग ने किया है। इस बारे में अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ कैंसर रिसर्च के जर्नल के फरवरी संस्करण में यह शोध प्रकाशित हुआ है।

भोपाल से नाता

पल्लवी भोपाल में मप्र माध्यम के पूर्व प्रमुख डॉ. सुरेश तिवारी की बेटी हैं। वे पिछले 14 साल से अमेरिका में शोध कर रही हैं। उनकी पढ़ाई इंदौर के केंद्रीय विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने जीएसआईटीएस से बायोमेडिकल में इंजीनियरिंग किया। बीई करने के बाद उन्होंने न्यूजर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी से मास्टर इन साइंस व पीएचडी की।

90 फीसदी एक्यूरेसी हासिल

उन्होंने नवदुनिया को फोन पर बताया कि एक या दो महीने में उनके शोध पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू होने वाले हैं। अभी केस वेस्टर्न रिसर्च यूनिवर्सिटी की रिसर्च लैब में वे कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं। खास तौर पर बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के इलाज को लेकर काम किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि उनकी रिसर्च इस मायने में खास है कि कैंसर की रूटीन तरीके से की गई एमआरआई से जानकारी निकालते हैं और फिर यह तय करते हैं कि इलाज कैसे करना है। उन्होंने बताया कि रिसर्च में 90 प्रतिशत एक्यूरेसी हासिल हुई है। क्लीनिकल ट्रायल सफल होने पर यह पता चल जाएगा कि किस मरीज को कीमो दिया जाए और किसे नहीं। क्योंकि 50 प्रतिशत मरीजों को कीमोथैरेपी के साइड इफेक्ट होते हैं।

जीएसआईटीएस के एक प्रोजेक्ट से मिली प्रेरणा

उन्होंने बताया कि जब वे जीएसआईटीएस में पढ़ रही थीं तो ब्लाइंड असिस्टेंस प्रोजेक्ट पर काम करने के दौरान उन्हें रिसर्च क्षेत्र में जाने की प्रेरणा मिली। ब्लाइंड असिस्टेंस प्रोजेक्ट को आईआईटी से अवार्ड मिला था। तभी उन्होंने सोचा था कि उन्हें रिसर्च में इस तरह का काम करना है, ताकि लोगों के लिए कुछ काम आए। 

 

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