(ब्यूरो कार्यालय)
भोपाल (साई)। राज्य सरकार अनुपयोगी हो चुके ढाई सौ से ज्यादा कानूनों को खत्म करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए राज्य विधि आयोग कानूनों का अध्ययन कर ऐसे कानूनों को खत्म करने का प्रस्ताव तैयार कर रहा है, जो समय के साथ अपनी उपयोगिता खो चुके हैं।
आयोग अब तक करीब आठ सौ कानूनों का अध्ययन कर चुका है। इनमें से दो सौ से ज्यादा कानून अनुपयोगी पाए गए हैं। यह आंकड़ा 250 या उससे ज्यादा भी हो सकता है। आयोग अगस्त अंत तक यह काम पूरा करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। इससे पहले केंद्र सरकार ऐसा कर चुकी है।
पिछले साल गठित प्रदेश का तीसरा राज्य विधि आयोग पुराने और अनुपयोगी कानूनों को खत्म करने और वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से नए कानून बनाने पर काम कर रहा है।
आयोग ने जनवरी से काम शुरू किया है और अब तक आठ सौ पुराने कानूनों का अध्ययन किया जा चुका है। इनमें से कुछ कानून सीमित अवधि के लिए थे, जिनकी अवधि समाप्त हो चुकी है, तो ज्यादातर वर्तमान परिस्थिति में अप्रभावी हो गए हैं इसलिए आयोग इन्हें रद्द करने की सिफारिश का ड्राफ्ट तैयार कर रहा है, जो अगले एक माह में राज्य सरकार को सौंपा जा सकता है।
विधि विभाग करेगा विचार : अनुपयोगी कानून रद्द करने संबंधी राज्य विधि आयोग के ड्राफ्ट पर पहले विधि विभाग काम करेगा। विभाग पहले यह देखेगा कि जिन कानूनों को खत्म करने की सिफारिश की गई है, वे वाकई अनुपयोगी हो गए हैं या नहीं। यदि विभाग की जांच में भी यह कानून अनुपयोगी पाए जाते हैं, तो विभाग अपनी रिपोर्ट के साथ आयोग की सिफारिश शासन को भेज देगा। इसके बाद सरकार इन कानूनों को रद्द करने का फैसला लेगी।
ये हैं अनुपयोगी कानून
द मप्र एग्रीकल्चरिस्ट लोन एक्ट 1984 कानून को नार्दन इंडिया तकावी एक्ट 1879 के नियमों में संशोधन के लिए लाया गया था। इसमें लोन राशि की वसूली का अधिकार सरकार को दिया था। वर्तमान में राष्ट्रीकृत और सहकारी बैंकें लोन देती हैं और वही वसूली करती हैं इसलिए कानून अप्रभावी हो गया।
द भोपाल गैस त्रासदी (जंगिन संपत्ति के विक्रयों को शून्य घोषित करना) अधिनियम 1985 गैस त्रासदी के डर से भोपाल से भागने वालों की संपत्ति बचाने के लिए यह कानून सीमित अवधि के लिए लाया गया था। इसमें तीन से 24 दिसंबर 1984 के मध्य बिकी संपत्ति के विक्रय को शून्य करने का प्रावधान था। इसकी अवधि 1984 में ही समाप्त हो गई है।
मप्र कैटल डिसीजेज एक्ट 1934 और मप्र हॉर्स डिसीजेज एक्ट 1960 दोनों कानूनों को पालतु पशुओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इसमें पशुओं की बीमारी और संक्रमण से सुरक्षा का प्रावधान था। वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने इसके लिए नया कानून बना दिया है, जो दोनों कानूनों से व्यापक है इसलिए यह कानून भी अनुपयोगी हो गया है।
मप्र ग्रामीण ऋण विमुक्ति अधिनियम 1982 यह कानून भूमिहीन कृषि मजदूरों, ग्रामीण मजदूरों और छोटे किसानों को 10 अगस्त 1982 से पहले के समस्त ऋ णों से मुक्त कराने बनाया गया था। इस अधिनियम की धारा-3 में यह प्रावधान था कि ऋ ण न चुकाने वाले किसी भी संबंधित के खिलाफ न तो अदालत में मामला दर्ज होगा और न ही रिकवरी के अन्य उपाय किए जाएंगे। इस अवधि से पहले के सभी मामले खत्म हो चुके हैं इसलिए यह कानून भी प्रभावी नहीं बचा है।
प्रदेश में एक हजार से ज्यादा कानून हैं। इनमें से करीब आठ सौ से ज्यादा का हम अध्ययन कर चुके हैं। इनमें से पहली नजर में 200 कानून अनुपयोगी पाए गए हैं। जिनका ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं, जो जल्द ही शासन को भेजा जाएगा।
जस्टिस वेद प्रकाश, अध्यक्ष,
मप्र राज्य विधि आयोग.

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