अब प्रदेश में पेपरलेस काम को मिलेगा बढ़ावा
(ब्यूरो कार्यालय)
भोपाल (साई)। प्रदेश के मंत्रालय वल्लभ भवन में 15 अगस्त से एक बार फिर ई-ऑफिस व्यवस्था शुरू होगी। इसमें फाइलें बाबू स्तर से लेकर मुख्यमंत्री सचिवालय तक कम्प्यूटर पर चलेंगी। दो अक्टूबर से यह व्यवस्था विभागाध्यक्ष और एक जनवरी 2020 से जिलाध्यक्ष कार्यालयों में लागू होगी।
इससे फाइलों के गुमने की संभावना खत्म हो जाएगी। वहीं, अधिकारियों की जवाबदेही भी तय होगी। मुख्यमंत्री कमलनाथ और मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती की मंशा को देखते हुए वित्त सहित कुछ अन्य विभागों के कर्मचारियों ने ई-ऑफिस का दोबारा प्रशिक्षण भी ले लिया।
सूत्रों के मुताबिक मुख्य सचिव ई-ऑफिस व्यवस्था को हर हाल में लागू करने के पक्ष में है। पिछले दिनों इसको लेकर हुई बैठक में कुछ प्रमुख सचिवों ने बड़ी फाइलों को पढ़ने में अड़चन आने का हवाला देते हुए ऑनलाइन और ऑफलाइन व्यवस्था रहने की बात उठाई थी।
इस पर मुख्य सचिव ने दो-टूक कहा था कि जब टाइपराइटर के दौर से हम कम्प्यूटर के दौर में आ गए तो इसमें भी कोई समस्या नहीं आएगी। हमें ई-ऑफिस को हर हाल में सफल बनाना है। दूसरे चरण में विभागाध्यक्ष और तीसरे चरण में जिलाध्यक्ष कार्यालय में इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा।
सामान्य प्रशासन विभाग यह भी तय कर रहा है कि कैबिनेट के जो प्रस्ताव मुख्य सचिव कार्यालय और मुख्यमंत्री सचिवालय जाते हैं, वे भी ई-ऑफिस के माध्यम से ही बढ़ाए जाएं। इसी माध्यम से कैबिनेट निर्णय की सूचना भी विभागों को दी जाए।
मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सभी विभागों में कम्प्यूटर और स्कैनर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो चुके हैं। अपर मुख्य सचिव से लेकर सहायक ग्रेड एक तक के कर्मचारियों को राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) के माध्यम से सॉफ्टवेयर का प्रशिक्षण दिलाया जा चुका है। इसके बाद भी वित्त सहित कुछ अन्य विभाग के कर्मचारियों ने दोबारा प्रशिक्षण भी ले लिया है।
क्या आएगा बदलाव : सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ई-ऑफिस व्यवस्था से हर स्तर पर जवाबदेही तय हो जाएगी। फाइल को आगे बढ़ाने के लिए हर स्तर पर अवधि तय है। इसके बाद भी फाइलें लंबित रहती हैं। कई बार मंत्रियों के कार्यालयों में फाइलें भेजी जाती हैं पर वहां महीनों रखी रहती हैं। इस व्यवस्था से हर फाइल का मूवमेंट ऑनलाइन रहेगा। इसको लेकर वरिष्ठ स्तर से पूछताछ भी की जा सकती है।
पिछले दिनों में कुछ फाइलों के गुम होने की बात भी सामने आई। ई-ऑफिस में पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रहेगा। एक बार कोई भी दस्तावेज इसमें आ गया तो फिर चाहकर भी इसमें छेड़खानी नहीं कर सकेगा। विभागाध्यक्ष और जिलाध्यक्ष कार्यालयों में इस व्यवस्था के लागू होने से प्रस्ताव आने-जाने में जो वक्त लगता है, वो नहीं लगेगा।
शिवराज सरकार में हुआ था लागू : ई-ऑफिस व्यवस्था शिवराज सरकार में लागू हुई थी लेकिन विधानसभा चुनाव को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। दरअसल, अधिकारियों-कर्मचारियों के कम्प्यूटर पर काम करने में पारंगत नहीं होने की वजह से फाइलों की गति धीमी पड़ गई थी।
इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में विलंब होने का जोखिम सरकार चुनाव के वक्त नहीं उठाना चाहती थी इसलिए तत्कालीन मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने इसे एच्छिक कर दिया था। इसे आधार बनाकर सभी विभागों में पुराने ढर्रे को अपना लिया और फिर फाइलें परंपरागत तरीके से चलने का सिलसिला शुरू हो गया, जो अभी तक जारी है।

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