अमेरीका के एक जंगल में एक नवयुवक दिन में लकड़ियाँ काटता था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन गरीब था। नजदीक में कोई विद्यालय नहीं था। अन्ततः उसने अपने से ही पढ़ने का निश्चय किया।
पुस्तकालय भी दस मील दूर था। उसने निश्चय किया कि वह पुस्तकालय से किताबें लाकर पढ़ेगा। वह अपने काम से छुट्टी पाकर दस मील दूर जाकर किताबें लाता, लकड़ी जलाकर पढ़ता और समय से पूर्व किताबें लौटा देता। पढ़-लिखकर अंततः वह वकील बना। उसने स्थानीय अदालत में वकालत शुरू की, लेकिन वकिल के रूपा में भी वह अपने को सही स्वरूप मे नहीं रख पाता। उसके पास पैसे नहीं थे, कपड़ों को दुरूस्त कैसे रखें?
उसके एक मित्र स्टैन्टन ने व्यंग्य किया- तू वकील तो लगता ही नहीं, लगता है उज्जड देहाती – वकालत कैसे चलेगी? उसने कहा- ‘चले या न चले क्या करूँ। मैं केवल पोशाक में ही विश्वास नहीं करता। विश्वास है एक बात में कि मैं झूठा मुकदमा नहीं लूँगा।‘
(प्रेरक प्रसंग)

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