स्वामी विवेकानंद को विदेश जाने से पहले एक बार खेतड़ी (राजस्थान) जाना पड़ा क्योंकि वहां के महाराजा की कोई संतान नहीं थी और स्वामीजी के आशीर्वाद से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी। इसी की खुशी में एक उत्सव मनाया जा रहा था। दरबार मंन कई सामंत, प्रजाजन और कलाकार उपस्थित थे।
कार्यक्रम के आखिरी में एक गणिका (वेश्या) अपना नृत्य औ? गीत प्रस्तुत करने के लिए उपस्थित हुई। स्वामीजी तत्काल सभाग्रह से उठकर अपने कक्ष में चले गए। गणिका को यह अच्छा नहीं लगा और उसने मधुर कंठ से गीत गाया, प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो।
जब गुरु ने विवेकानंद से कहा – तू तो क्या तेरी हड्डियों से भी विश्व कल्याण होगा
स्वामीजी ने जब यह गीत सुना तो वे अपने कमरे से वापस सभाग्रह में आए और कार्यक्रम में उपस्थित रहे। स्वामीजी ने सोच, मैं वितराग संन्यासी हूं और मुझमें नारी और पुरुष के प्रति यह भेदबुद्धि नहीं होना चाहिए।

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