लंबे समय तक पठानों को लेकर यह आम राय बनी हुई थी कि यह लड़ाकू लोगों का झुंड है। ये लोग लड़ते वक्त इंसान और इंसानियत को भूल जाते हैं। इनका बदला जितना खूंखार होगा उतना ही इनकी ताकत के ढोल बजेंगे। तब किसने सोचा था कि कोई आएगा और इन्हें लड़ाई-झगड़ों के रास्ते से इतर शांति और सेवा की पगडंडियों पर ले जाएगा। यह काम किया खान अब्दुल गफ्फार खान ने। हर कबीले के पठानों को इकट्ठा करके शांति, सद्भावना और प्रेम के लिए संगठित करके उन्होंने खुदाई खिदमतगार की नींव रखी।
हर एक पर हाथ उठा लेने वाले पठान जबसे खुदाई खिदमतगार बने, तबसे उनका हर विरोध अहिंसा की राह होकर जाने लगा। अंग्रेजों की लाठियों से इनके सिर से खून की धार बह उठती, फिर भी खान बाबा के ये अनुशासित सिपाही गांधी मार्ग से नहीं डिगते। बादशाह खान इकलौते शख्स थे जिन्हें महात्मा गांधी की जिंदगी में ही दूसरा गांधी कहा जाने लगा। सरहदी गांधी के नाम से मशहूर बादशाह खान के बहुत से दिलचस्प किस्से हैं।
एक बार जब वह गांधी जी के पास रुकने आए तो गांधी जी फिक्र में थे कि अपने इस पख्तून पठान को खाने में गोश्त कैसे दें। आश्रम में मांसाहार वर्जित था। फिर भी गांधी जी खुद खान साहब के लिए गोश्त पकाने को तैयार हो गए। तब बादशाह खान बोल उठे, वाह बापू, एक पठान के लिए आप आश्रम का नियम तोड़ सकते हैं तो एक पठान क्या एक वक्त अपना खाना नहीं छोड़ सकता? आज उन्हीं बादशाह खान की पुण्यतिथि है। गांधी जी अपने इस पठान साथी के लिए खुद वुजू का पानी रखते, जानमाज बिछाते, तो यह अफगानी पठान भी गांधी की प्रार्थना सभा में सबसे ऊंची आवाज में भजन गाता। बादशाह खान जैसे लोगों ने प्रेम, समर्पण और त्याग से देश की नींव को मजबूत बनाया।

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