सहिष्णुता से होता है ह्दय परिवर्तन

दशकों पहले स्वामी दयानद गंगा नदी के किनारे रहते थे। वहां वह चिंतन करते थे। वहां अन्य साधु रहते थे। वह उनकी इस साधना से ईर्ष्या करते थे। उन्हें लगता था कि दयानंद उनके प्रभाव को कम न कर दें।

इस बात से नाराज होकर सभी साधुओं ने दयानंद जी को भला-बुरा कहा। लेकिन उन्होंने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। अब वह साधु रोज उनकी निंदा करते और वो कुछ न कहते।

एक दिन जब स्वामी दयानंद भोजन करके अपने स्थान से उठ रहे थे तभी एक सेठ ताजे फल लेकर आया। स्वामी जी ने ये फल उन निंदा करने वाले साधुओं के लिए भिजवा दिए।

यह सब घटनाक्रम के बाद वह साधु बहुत लज्जित हुए। वह स्वामी दयानंद के पास गए और उसे अपने बर्ताब के लिए क्षमा याचना की।

(साई फीचर्स)