कर्म बड़ा या भाग्य!

इस दुनिया में कर्म को मानने वाले लोग कहते हैं भाग्य कुछ नहीं होता। और भाग्यवादी लोग कहते हैं किस्मत में जो कुछ लिखा होगा वही होके रहेगा। यानी इंसान कर्म और भाग्य इन दो बिंदुओं की धूरी पर घूमता रहता है। और एक दिन इस जग को अलविदा कहकर चला जाता है।

भाग्य और कर्म को बेहतर से समझने के लिए पुराणों में एक कहानी का उल्लेख मिलता है। एक बार देवर्षि नारद जी वैकुंठधाम गएवहां उन्होंने भगवान विष्णु का नमन किया। नारद जी ने श्रीहरि से कहाप्रभु! पृथ्वी पर अब आपका प्रभाव कम हो रहा है। धर्म पर चलने वालों को कोई अच्छा फल नहीं मिल रहाजो पाप कर रहे हैं उनका भला हो रहा है।

तब श्रीहरि ने कहाऐसा नहीं है देवर्षिजो भी हो रहा है सब नियति के जरिए हो रहा है।

नारद बोलेमैं तो देखकर आ रहा हूंपापियों को अच्छा फल मिल रहा है और भला करने वालेधर्म के रास्ते पर चलने वाले लोगों को बुरा फल मिल रहा है।

भगवान ने कहाकोई ऐसी घटना बताओ। नारद ने कहा अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूंवहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था। तभी एक चोर उधर से गुजरागाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुकावह उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर चोर को सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिली।

थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया। प्रभु! बताइए यह कौन सा न्याय है?

नारद जी की बात सुन लेने के बाद प्रभु बोलेयह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया थाउसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरें ही मिलीं।

वहींउस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है।

(साई फीचर्स)

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