जीडीपी का सीधा असर होता है आपकी जेब पर . . .

लिमटी की लालटेन 116
(लिमटी खरे)
देश की हालत कोरोना काल में बहुत खराब हुई है। हर मोर्चे पर देश की जनता को विफलता ही विफलता सामने दिखाई दे रही है। सोमवार को सरकार के द्वारा आर्थिक विकास दर के आंकड़े जारी किए, इन आंकड़ों से देश की अर्थव्यवस्था की हकीकत सामने आई है, या यूं कहा जाए कि सरकार ने खुद ही आईना देख लिया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। इस वित्तीय वर्ष अर्थात अप्रैल से जून तक के आंकड़ों पर अगर गौर फरमाएं तो सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी में 23.9 फीसदी की कमी आई है।
कोरोना काल में दुनिया के लगभग सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। दुनिया भर के देशों में सबसे ज्यादा चिंताजनक आंकड़े भारत के ही दिखाई दे रहे हैं। जीडीपी में गिरावट अगर दर्ज की गई है तो इसे बहुत हद तक अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन का परिणाम ही माना जा सकता है। इससे उद्योग जगत में हड़कंप मचना स्वाभाविक ही है।
दरअसल कोरोना काल में टोटल लॉक डाऊन के दौरान सब कुछ बंद रहा और यही कारण था कि अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा गई। पिछले दो सालों में अर्थव्यवस्था में जमकर गिरावट दर्ज की जाती रही है। अगर दो सालों में हालात सामान्य ही रहते तो निश्चित तौर पर पूर्ण बंदी अर्थात टोटल लॉक डाऊन के दौरान उतपन्न आर्थिक संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता था। कृषि के क्षेत्र को अगर छोड़ दिया जाए तो इसके अलावा शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा होगा जहां उत्पादन के संबंध में कोई काम हुआ हो। हर क्षेत्र की हालत खराब है। रोजगा देने के मामले में बिल्डिंग अर्थाण निर्माण के क्षेत्र पर ही अगर आप नजर डालें तो इसका ग्राफ भी पचास फीसदी के नीचे ही चला गया है।
सरकार के द्वारा लगातार ही हकीकत से मुंह छुपाया गया। सरकार सदा ही कहती रही कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद पूरी तरह मजबूत है, देश की अर्थव्यवस्था को कोई खतरा नहीं है पर यह सब कुछ सत्य को नकारने जैसी बातें ही मानी जा सकतीं हैं। कोरोना काल में आर्थिक हालात बिगड़े हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है किन्तु यह भी आईने के मानिंद ही साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था पिछली आठ तिमाहियों अर्थात दो सालों से लगातार ही नीचे जा रही है।
कोरोना काल में पर्यटन उद्योग पूरी तरह ठप्प पड़ा हुआ है। केंद्र और प्रदेश सरकारों के खजानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकार अपनी हिस्सेदारियां बेच रही है। सरकारी स्तर पर खर्च में कहीं भी कमी महसूस नहीं की जा रही है। प्रदेशों की सरकारें लगातार ही कर्ज ले रहीं हैं। बढ़ता हुआ सरकारी खर्च और राजकोषीय घाट आने वाले समय में बहुत ही बड़े संकट की ओर इशारा करता दिख रहा है।
देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार के द्वारा इक्कीस लाख करोड़ रूपए के पैकेज की घोषणा के बाद भी आंकड़ों की भयावहता इससे कम होती नहीं दिख रही है। लगभग 68 दिन की पूर्णबंदी के दौरान देश की आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप्प रहीं। सरकार के द्वारा इस 68 दिन की पूर्णबंदी के दौरान भी कोरोना से निपटने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना तैयार न किया जाना भी कम आश्चर्यजनक नहीं है। अब अनलॉक चार में सब कुछ खोलने की तैयारी की जा रही है। लोगों का कहना है कि जब सब कुछ बंद करना चाहिए तब खोला जा रहा है और जब महज 500 मरीज थे तब सब कुछ बंद कर दिया गया था। इसका सीधा मतलब यह है कि जब दौड़ने की बारी आई तब लोग पहले ही इतना दौड़ चुके हैं कि वे बुरी तरह हॉफ रहे हैं।
चीन जहां से यह वायरस निकला था वहां की जीडीपी 3.2 फीसदी रही, तो जापान की माईनस 7.6 वहीं भारत की जीडीपी माईनस 23.9 फीसदी रही। लोकल फार वोकल के सहारे क्या देश की अर्थव्यवस्था को उबारा जा सकता है! वैसे इस जुमले को लोगों के बीच उछालकर सरकार ने एक तरह से ध्यान भटकाने का ही प्रयास किया है। आज से दो चार माह बाद लोकल फार वोकल सिर्फ और सिर्फ नारे में ही सुनाई दे पाएगा। चीन जहां से यह वायरस निकला था वहां की जीडीपी 3.2 फीसदी रही, तो जापान की माईनस 7.6 वहीं भारत की जीडीपी माईनस 23.9 फीसदी रही। यह आंकड़ा आर्गनाईज्ड सेक्टर का है, पर जब आप अनार्गनाईज्ड सेक्टर के आंकड़े इसमें जोड़ेंगे तो यह और भी भयावह स्वरूप ले सकता है।
सरकार के द्वारा कृषि क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन को ढाल बनाने का प्रयास किया जा सकता है, पर सवाल यही खड़ा है कि आखिर कृषि क्षेत्र की बढ़ोत्तरी देश की अर्थव्यवस्था को किस तरह सहारा दे पाएगी! अप्रैल से जून के दौरान की अवधि के पीएफसीई अर्थात प्राईवेट फायलन कंजम्शन एक्सपेंडीचजर के आंकड़ों में भी 54.3 फीसदी की कमी दर्ज की गई है, जबकि पिछले साल इस अवधि में यह 56.4 फीसदी बढ़त पर थी।
जानकारों का कहना है कि पीएफसीई को परिवार की खपत आंकने के लिए सबसे सटीक पैमाने के बतौर देखा जाता है। लॉक डाऊन के दौरान लोगों ने जरूरी सामग्रियों के अलावा लगभग सब कुछ खरीदना बंद कर दिया है। इसका कारण मौजूदा संकट को कतई नहीं माना जा सकता है। अब लोग भविष्य की जरूरतों और उपलब्ध संसाधनों के हिसाब से चल रहे हैं। अगर लोगों को यह भरोसा रहेगा कि उनकी नौकरी या रोजगार पहले की तरह नहीं तो पहले से कुछ कम रहेगा, पर चलता रहेगा तो लोग इन चीजों पर निवेश करने से नहीं हिचकेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश में लंबी मंदी का आलम फैल जाएगा जो बहुत बड़े संकट से कम नहीं होगा।
आप अपने घरों में रहें, घरों से बाहर न निकलें, घर से निकलते समय मास्क का उपयोग जरूर करें, सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी को बरकरार रखें, शासन, प्रशासन के द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का कड़ाई से पालन करें। हम लिमटी की लालटेन का 117वां एपीसोड लेकर जल्द हाजिर होंगे, तब तक के लिए इजाजत दीजिए . . .
(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)
(साई फीचर्स)

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