जानिए कब है वैशाख पूर्णिमा, जानिए पूजा विधि सब कुछ विस्तार से . . .

धर्म, आस्था और प्रकृति का अनूठा संगम है वैशाख पूर्णिमा . . .
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भारतवर्ष की संस्कृति में तिथियों का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि को विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व प्राप्त है, परंतु ष्वैशाख पूर्णिमाष् का स्थान विशेष है। यह तिथि न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए पावन है, बल्कि बौद्ध धर्म में भी इसका गहन महत्व है। यह दिन सत्य, तप, दान, धर्म और ज्ञान का प्रतीक बनकर श्रद्धालुओं के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करता है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
कब है पूर्णिमा तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख पूर्णिमा की शुरुआत 11 मई को शाम 06 बजकर 55 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 12 मई को शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा। हिंदू धर्म में उदया तिथि का महत्व है। ऐसे में इस बार 12 मई को वैशाख पूर्णिमा मनाई जाएगी। वैशाख पूर्णिमा पर चंद्रोदय का समय शाम 05 बजकर 59 मिनट पर होगा। इस समय आप अर्घ्य दे सकते हैं।
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पंचांग के अनुसार इस दिन
सूर्याेदय – सुबह 05 बजकर 32 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 07 बजकर 03 मिनट पर
चन्द्रोदय- शाम 06 बजकर 57 मिनट पर
चन्द्रास्त- सुबह 05 बजकर 31 मिनट पर
ब्रम्ह मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 08 मिनट से 04 बजकर 50 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02 बजकर 33 मिनट से 03 बजकर 27 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 07 बजकर 02 मिनट से 07 बजकर 23 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 38 मिनट तक रहेगा।
वैशाख मास का धार्मिक परिप्रेक्ष्यउ जानिए,
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का दूसरा माह वैशाख होता है, जिसे अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। महाभारत, स्कंद पुराण, पद्म पुराण और अन्य कई धार्मिक ग्रंथों में वैशाख मास के महत्व का वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि इस मास में एक दिन किया गया पुण्य कार्य सौ गुना फलदायक होता है। विशेष रूप से स्नान, दान और व्रत के लिए यह मास उपयुक्त माना जाता है।
जानिए वैशाख पूर्णिमा की तिथि और खगोलीय स्थिति क्या है,
पूर्णिमा वह स्थिति होती है जब चंद्रमा पूर्ण रूप से पृथ्वी से दिखाई देता है और सूर्य के ठीक विपरीत होता है। वैशाख पूर्णिमा, वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि होती है और यह अप्रैल अथवा मई महीने में आती है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओं से पूर्ण होता है, जिसे पूर्णिमा की संज्ञा दी जाती है।
बौद्ध धर्म में वैशाख पूर्णिमा का विशेष स्थान है यह जानिए,
बौद्ध धर्म में वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाणकृइन तीनों घटनाओं से जुड़ा हुआ है। यह अत्यंत दुर्लभ संयोग है कि एक ही तिथि पर बुद्ध के जीवन की तीन महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं।
भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था इस दिन,
कहा जाता है कि वैशाख मास की पूर्णिमा को भगवान बुद्ध का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। शाक्य वंश के राजकुमार सिद्धार्थ ने बाल्यकाल से ही संसार की नश्वरता और दुखों को समझ लिया था।
उनकी ज्ञान प्राप्ति के बारे में जानिए,
29 वर्ष की आयु में उन्होंने संसारिक जीवन का त्याग कर तपस्या का मार्ग अपनाया। वर्षों की साधना और ध्यान के बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन ही उन्हें गया में बोधिवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ और वे बुद्ध बने।
उनके महापरिनिर्वाण के बारे में जानिए,
80 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा को ही बुद्ध ने कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। इस प्रकार, यह तिथि बुद्ध के जीवन के तीन अहम पड़ावों की साक्षी है, अतः बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए यह अत्यंत पवित्र दिन बन जाता है।
पुष्करणी तिथियों का पुण्यफल मिलता है इन तिथियों में,
वैशाख शुक्ल त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ पुष्करणी तिथियाँ कही गई हैं। इन दिनों में स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी को अमृत प्रकट हुआ, द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की, त्रयोदशी को देवताओं ने सुधा पान किया, चतुर्दशी को दैत्यों का संहार हुआ और पूर्णिमा को देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हुआ। अतः यह तिथियाँ पापों के विनाश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति कराने वाली मानी गई हैं।
धर्मराज को प्रसन्न करने का दिन होता है यह,
वैशाख पूर्णिमा के दिन मृत्यु के देवता धर्मराज की कृपा प्राप्त करने हेतु व्रत रखने और दान करने का विधान है। इस दिन जल से भरा कलश, छाता, जूते, पंखा, सत्तू और पकवान आदि का दान करना विशेष फलदायी माना गया है। यह दान गोदान के समान फल देता है और धर्मराज की कृपा से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। नारद पुराण के अनुसार, इस दिन जितना अधिक दान किया जाए, उतने ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
हिंदू धर्म में वैशाख पूर्णिमा का महत्व जानिए,
सत्यनारायण व्रत और कथा करना चाहिए,
हिंदू धर्म में वैशाख पूर्णिमा को सत्यनारायण व्रत और पूजन के लिए सर्वाेत्तम दिन माना जाता है। इस दिन व्रती भक्त उपवास रखते हैं, घर को स्वच्छ कर के विशेष पूजन करते हैं और सत्यनारायण कथा का आयोजन करते हैं। यह कथा जीवन में सत्य, धर्म और परोपकार की महत्ता को उजागर करती है।
गंगा स्नान और दान करना चाहिए,
इस दिन गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, गोदावरी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्नान के बाद अन्न, वस्त्र, जल, शर्बत, पंखा, घड़ा, छाता, चप्पल आदि का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
हनुमान जी और कश्यप ऋषि की पूजा करने से होता है फल प्राप्त,
कुछ मान्यताओं के अनुसार वैशाख पूर्णिमा के दिन हनुमान जी ने अपनी शक्ति से सूर्य को गुरु बनाकर समस्त विद्याओं की प्राप्ति की थी। इसीलिए कई स्थानों पर इस दिन हनुमान पूजन भी किया जाता है। साथ ही यह तिथि कश्यप ऋषि की जयंती के रूप में भी मनाई जाती है, जो सृष्टि के आदिकालीन सप्तर्षियों में से एक माने जाते हैं।
इस दिन रखे जाने वाले व्रत की विधि जानिए,
तड़के उठकर पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल मिश्रित जल से स्नान करें।
भगवान विष्णु या सत्यनारायण का ध्यान करें। पीले वस्त्र धारण करें और पूजन सामग्री एकत्र करें।
सत्यनारायण व्रत कथा का विधिपूर्वक पाठ करें। कथा के पाँच अध्याय होते हैं जिन्हें ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए।
कथा के पश्चात प्रसाद वितरण और संभव हो तो भंडारा करें।
ब्राम्हणों, गरीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, पंखा, जल पात्र आदि दान करें।
वैशाख पूर्णिमा और पर्यावरण चेतना को जानिए,
वैशाख पूर्णिमा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, यह पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से जुड़ाव का भी प्रतीक है। इस तिथि पर वृक्षारोपण, जल स्रोतों की सफाई, पक्षियों के लिए जल पात्र रखने जैसे कार्यों को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है। विशेषकर उत्तर भारत में लोग इस दिन तुलसी, पीपल, नीम आदि पौधों का पूजन करते हैं और पर्यावरण के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
वैशाख पूर्णिमा से जुड़ी कथाएँ और लोक विश्वास के बारे में आपको बताते हैं।
कुछ पुराणों में उल्लेख मिलता है कि धु्रव को इसी दिन भगवान विष्णु के दर्शन हुए थे। पाँच वर्ष की आयु में कठोर तप करने वाले धु्रव को भगवान ने आशीर्वाद दिया और उसे धु्रव तारे का स्थान प्रदान किया।
यह भी माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त सुदामा इसी दिन द्वारका गए थे और श्रीकृष्ण ने उन्हें राजसी वैभव प्रदान किया।
वैशाख पूर्णिमा केवल आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन सामूहिक भोज, कथा आयोजन, धार्मिक जुलूस और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं जो समाज को एकता, सहयोग और परोपकार की भावना से जोड़ते हैं।
भारत के कई हिस्सों में इस दिन विशेष मेले और मेलों का आयोजन होता है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार और बिहार के बोधगया में विशेष भीड़ होती है। बौद्ध देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, भूटान और म्यांमार में भी यह दिन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
इस दिन का वैज्ञानिक दृष्टिकोण जानिए,
पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी से सबसे चमकीला दिखाई देता है। वैज्ञानिकों के अनुसार पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार-भाटा अधिक होता है क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव चरम पर होता है। भारतीय परंपरा में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है, इसलिए पूर्णिमा के दिन ध्यान, साधना और संयम से मन की चंचलता पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
वैशाख पूर्णिमा धर्म, आस्था, पर्यावरण चेतना और सामाजिक समरसता का अद्भुत संगम है। यह दिन न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मानवता के मूल्यों को भी पुष्ट करता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह बुद्ध के आदर्शों को अपनाने का दिन है, तो हिंदू श्रद्धालुओं के लिए यह सत्य, तप और दान का पर्व है। जब समस्त प्रकृति प्रसन्नचित्त होती है, तो यह तिथि मानवीय जीवन को भी नवजीवन प्रदान करती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस शुभ दिन पर आत्मचिंतन, सेवा और परोपकार का संकल्प लेना चाहिए।
हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)

शरद खरे

लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . . समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया देश की पहली डिजीटल न्यूज एजेंसी है. इसका शुभारंभ 18 दिसंबर 2008 को किया गया था. समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया में देश विदेश, स्थानीय, व्यापार, स्वास्थ्य आदि की खबरों के साथ ही साथ धार्मिक, राशिफल, मौसम के अपडेट, पंचाग आदि का प्रसारण प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है. इसके वीडियो सेक्शन में भी खबरों का प्रसारण किया जाता है. यह पहली ऐसी डिजीटल न्यूज एजेंसी है, जिसका सर्वाधिकार असुरक्षित है, अर्थात आप इसमें प्रसारित सामग्री का उपयोग कर सकते हैं. अगर आप समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को खबरें भेजना चाहते हैं तो व्हाट्सएप नंबर 9425011234 या ईमेल samacharagency@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं. खबरें अगर प्रसारण योग्य होंगी तो उन्हें स्थान अवश्य दिया जाएगा.