हादसों का अस्पताल!

 

 

(शरद खरे)

प्रियदर्शनी के नाम से सुशोभित जिला चिकित्सालय में पिछले कुछ सालों से व्यवस्थाएं पटरी से उतरी ही नज़र आतीं हैं। अस्पताल प्रशासन के द्वारा सफाई और सुरक्षा के काम को आऊट सोर्स कराया जाकर लाखों रूपये हर माह खर्च किये जाते रहे हैं पर दोनों ही व्यवस्थाएं संतोष जनक स्तर पर कभी भी नहीं रही होंगी, यह अलहदा बात है कि अस्पताल प्रशासन के लिये व्यवस्थाएं संतोषजनक रहीं हों।

पिछले दिनों एक के बाद एक घटनाक्रम घटित हुए जिससे अस्पताल की जमीनी हकीकत सामने आयी है। पहली घटना तो 16 और 17 अक्टूबर की दरमियानी रात अस्पताल में घटित हुई। इस घटना के वीडियो भी वायरल हुए। इसमें एक वीडियो में चिकित्सक के द्वारा सुरक्षा गार्ड से अपशब्द कहे जा रहे हैं तो दूसरे वीडियो में एक व्यक्ति के द्वारा सुरक्षा गार्ड को बेरहमी से पीटा जा रहा है।

वीडियो में साफ दिखायी दे रहा है कि एक गार्ड पिट रहा है और दूसरा गार्ड हाथ पर हाथ रखे सब कुछ देख रहा है। सवाल यह है कि अस्पताल में सुरक्षा एजेंसी का काम क्या है! जब सुरक्षा गार्ड ही आताताईयों से महफूज़ नहीं हैं तो इन पर लाखों रूपये हर माह खर्च करने का क्या औचित्य! इस मामले में अस्पताल प्रशासन को तत्काल प्रभाव से सुरक्षा एजेंसी का अनुबंध समाप्त करते हुए उस कंपनी को काली सूची के हवाले कर दिया जाना चाहिये था।

अस्पताल प्रशासन की आँखों का नूर बनी सुरक्षा एजेंसी के कर्मचारियों के रहते हुए सेवा निवृत्ति की कगार पर पहुँच चुके शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ.आर.के. शर्मा के साथ एक मरीज़ के परिजन के द्वारा मारपीट कर दी जाती है। इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन के द्वारा संज्ञान नहीं लिया जाता है।

यही नहीं, अस्पताल परिसर के अंदर शराब खोरी की खबरें लगातार मिलती रहती हैं। इसके आलावा अस्पताल के अंदर आवारा मवेशी, कुत्ते, सूअर, गधे आदि भी बेरोकटोक घूमते रहते हैं। अस्पताल में सफाई व्यवस्था का आलम यह है कि अनेक बार आपातकालीन प्रभाग के ड्रेसिंग रूम में इस कदर दुर्गंध उठती है कि मरीज़ तो मरीज़, चिकित्सक और पेरामेडीकल स्टॉफ भी वहाँ काम करने में असहज महसूस करते हैं।

अस्पताल के हालात इस तरह के तब हैं जबकि जिलाधिकारी प्रवीण सिंह, अस्पताल का लगभग हर दूसरे दिन निरीक्षण कर रहे हैं। अस्पताल में कायाकल्प अभियान जारी है। इस कायाकल्प अभियान का निरीक्षण विधान सभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति के साथ ही साथ प्रभारी मंत्री सुखदेव पांसे भी कर चुके हैं।

आज आवश्यकता इस बात की महसूस की जा रही है कि कायाकल्प अभियान के साथ ही साथ अस्पताल के अंदर की व्यवस्थाओं पर भी बारीक नज़र रखी जाये। अस्पताल प्रबंधन के द्वारा जिस तरह से काम किया जा रहा है उससे मरीज़ों को सुविधा की बजाय असुविधा का सामना ज्यादा करना पड़ रहा है। आश्चर्य तो इस बात पर है कि यह सब कुछ देखने सुनने के बाद सांसद, विधायक सहित काँग्रेस और भाजपा के संगठन के नुमाईंदे भी अपना मौन नहीं तोड़ पा रहे हैं।

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