झोला छाप को बल्क में दवाएं!

 

 

(शरद खरे)

जिले में स्वास्थ्य विभाग को पक्षाघात हुआ प्रतीत हो रहा है। प्रभारी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी रहते हुए सेवानिवृत्त हो चुके डॉ.राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव एवं जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट के पद पर पदस्थ डॉ.करूणेश सिंह मेश्राम ने दर्जनों बार झोला छाप चिकित्सकों की मश्कें कसने की कवायद की, पर यह सारी कवायद महज कागजों में की गयी इसलिये मानी जा सकती है क्योंकि इनके कार्यकाल में एक भी झोलाछाप चिकित्सक के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर कार्यवाही नहीं की गयी।

हाल ही में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी एवं खाद्य एवं औषधि प्रशासन के उपसंचालक के अधीन कार्यरत अमले के हवाले से जारी सरकारी विज्ञप्ति में यह कहा जाना कि जिले के औषधि विक्रेताओं के द्वारा जिले में मौजूद बिना डिग्री, डिप्लोमा के क्लीनिक संचालित करने वाले चिकित्सकों को बेधड़क रूप से बड़ी मात्रा में दवाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं।

इस तरह की सरकारी विज्ञप्ति को अपने आप में इस बात की स्वीकारोक्ति माना जा सकता है कि जिले में झोलाछाप चिकित्सकों का काकस इतना मजबूत है कि इस काकस की चूलें हिलानें में सरकारी स्तर पर काम करने वाला स्वास्थ्य विभाग का अमला भी बौना साबित हो रहा है।

इस तरह की विज्ञप्ति से यह बात स्थापित हो रही है कि जिले में झोलाछाप चिकित्सक सक्रिय हैं जिनके पास डिग्री या डिप्लोमा नहीं है और उनके द्वारा अगर बड़ी तादाद (बल्क) में दवाएं ले जायी जा रही हैं तो निश्चित तौर पर इन दवाओं को मरीज़ों के बीच ही खपाया जाकर उनकी जान से खिलवाड़ किया ही जा रहा होगा।

जिले में झोलाछाप चिकित्सकों पर अंकुश लगाने के लिये स्वास्थ्य विभाग के मुखिया माने जाने वाले मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ही सक्षम माने जा सकते हैं। इसके पूर्व सीएमएचओ कार्यालय के द्वारा कितनी बार नोटिस जारी किये गये, उन नोटिस पर क्या कार्यवाही हुई, अगर नहीं हुई तो क्यों, आदि बातों की जाँच किया जाना जरूरी है।

सरकारी विज्ञिप्ति में यह बात भी कही गयी है कि इन झोलाछाप चिकित्सकों को उपलब्ध करायी जाने वाले दवाओं में शेड्यूल एच एवं एच 01 के अंतर्गत आने वाली दवाएं भी शामिल हैं। अगर ऐसा है तो यह बात और भी संगीन हो जाती है।

वर्तमान में जीएसटी लागू है। इस लिहाज़ से बिना बिल के थोक दवा विक्रेताओं के पास दवाएं तो निश्चित रूप से नहीं ही आ पा रही होंगी, और वे बिना बिल दिये इन दवाओं को किसी को भी बेच नहीं पा रहे होंगे। इतने कड़े नियम कायदों के बाद भी अगर दवाओं को बिना बिल के बुलाकर बिल दिये बिना ही बेचा जा रहा है तो यह अपने आप में अजूबे से कम नहीं माना जा सकता है।

विज्ञप्ति में इस बात का समावेश भी किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर नहीं है और वह मरीजों को दवाएं दे रहा है तो यह अवैधानिक है। साथ ही थोक विक्रेताओं द्वारा बिना लाईसेंसधारी व्यक्ति को, बिना बिल के औषधि विक्रय करना भी अनुज्ञप्ति प्रदाय की शर्तांे का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है।

अमूमन दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों के द्वारा उन्हें मिले लक्ष्य (टारगेट) को पूरा करने के लिये पंजीकृत चिकित्सकों के अलावा झोलाछाप चिकित्सकों के जरिये दवाओं का विक्रय कराया जाता है। झोला छाप चिकित्सक वैसे भी दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों के लिये दवाओं के विक्रय के लक्ष्य को पाने में बहुत उपयोगी साबित होते हैं।

इस तरह से विज्ञप्ति में यह बात साफ होती दिख रही है कि जिले में सालों से इस तरह के अवैध काम को अंजाम दिया जाता रहा है और विभाग के उप संचालक सहित अन्य अधीनस्थ अमले के द्वारा कोताही बरती जाती रही है। इस मामले में कम से कम पाँच सालों का रिकॉर्ड खंगाला जाकर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित की जाये ताकि भविष्य में इस तरह की अनियमितता करने के पहले दवा विक्रेता कई बार विचार अवश्य करें।

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