(शरद खरे)
जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा मई माह के बाद लगभग समूचा ध्यान प्रियदर्शनी के नाम से सुशोभित जिला अस्पताल की ओर केंद्रित किया हुआ है। वे इस अस्पताल का दो दर्जन से ज्यादा बार निरीक्षण कर चुके हैं पर अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधर नहीं पा रही हैं। निश्चित तौर पर कहीं न कहीं कमी अवश्य रह जा रही है।
जिला अस्पताल से सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात लगभग एक बजे जिला अस्पताल से एक नाबालिग बाहर निकलकर गायब हो जाती है। यह तब होता है जबकि अस्पताल में प्रवेश के लिये पास सिस्टम लगभग दो माह से लागू है और जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के निर्देश पर इसे 01 अगस्त से कड़ाई से लागू किया गया है।
जिला अस्पताल का अगर निरीक्षण उनके द्वारा किया गया होगा तो वे भी इस बात को स्वीकार करेंगे कि अस्पताल में प्रवेश और निकासी के लिये सीएमएचओ कार्यालय की ओर, प्राईवेट वार्ड, प्रसूति केंद्र, पुरानी इमरजेंसी और ओपीडी की ओर एक-एक द्वार हैं। इस तरह अस्पताल में प्रवेश और निकासी के लिये महज़ चार द्वार हैं।
इनमें से प्रसूति विभाग, सीएमएचओ कार्यालय, प्राईवेट वार्ड के द्वार लगभग हर समय ही बंद रहते हैं। पुरानी इमरजेंसी एवं ओपीडी पहुँचने के रास्ते में बना द्वार दिन में खुला रहता है। पास सिस्टम लागू होने के बाद इन सभी द्वारों को दिन में सुबह शाम महज एक एक घण्टे के लिये ही खोला जाना चाहिये।
घटनाक्रम जैसा पता चल रहा है उसके अनुसार नाबालिग के द्वारा किसी को फोन किया गया, उसके बाद जिसे फोन किया गया वह आया और उससे बात करने के बाद नाबालिग अस्पताल से निकलकर बाहर चली गयी। इसके बाद वह एंबुलेंस की मदद से बस स्टैण्ड पहुँची, वहाँ से निजि बस के जरिये वह नागपुर जा पहुँची।
इस पूरे घटनाक्रम में यक्ष प्रश्न यही है कि क्या रात में बारह बजे के बाद अस्पताल में प्रवेश के लिये द्वार खुले रहते हैं! क्या अस्पताल को वाकई में सराय बना दिया गया है! अगर द्वार बंद थे तो कोई अबोध नाबालिग बालिका रात को एक बजे बाहर जाती है और सुरक्षा कर्मी उससे बाहर जाने के लिये कोई प्रश्न नहीं करते हैं!
इस मामले में बहुत सारे प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही हैं। देखा जाये तो यह गंभीर चूक है और यह चूक कारित की गयी है अस्पताल की सुरक्षा का दायित्व उठाने वाली निजि कंपनी के द्वारा। नियमानुसार इस गंभीर चूक पर अस्पताल और पुलिस प्रशासन को सुरक्षा एजेंसी को बकायदा नोटिस दिया जाकर समय सीमा में जवाब माँगा जाना चाहिये! वैसे तो यह मामला आईने की तरह ही साफ दिखायी दे रहा है जिसमें सुरक्षा एजेंसी का अनुबंध समाप्त किया जाकर उसे काली सूची में डाल दिया जाना चाहिये।
विडंबना ही कही जायेगी कि इसके पहले भी सफाई और सुरक्षा में लगी निजि एजेंसी के कारिंदों के द्वारा गंभीर गलतियां की गयी हैं, पर इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन की आँखों का नूर (कारण चाहे जो भी हो) ये कंपनियां बनी रहीं। इस मामले में जिले के दोनों सांसदों डॉ.ढाल सिंह बिसेन, फग्गन सिंह कुलस्ते सहित चारों विधायक दिनेश राय, योगेंद्र सिंह, राकेश पाल सिंह और अर्जुन काकोड़िया को आगे आकर प्रशासन को कार्यवाही के लिये बाध्य करना चाहिये।
जिलाधिकारी खुद अस्पताल का बार-बार निरीक्षण करते आये हैं। उनके संज्ञान में अगर इस तरह की गंभीर चूक नहीं आ पा रहीं है तो इसे जिला अस्पताल का दुर्भाग्य ही माना जाना चाहिये। वैसे जिलाधिकारी को भी यह बात समझना होगा कि सिर्फ निर्माण या रंग रोगन से व्यवस्थाएं अगर सुधरतीं तो . . .!

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