विस्थापित आज भी हैं विस्थापित!

 

(शरद खरे)

लगभग 44 साल पहले नर्मदा नदी पर जबलपुर जिले के बरगी शहर के पास रानी अवंति बाई सागर परियोजना के अंतर्गत बरगी बांध का निर्माण करवाया गया था। 1974 में बनाये गये इस बांध से आसपास के क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के साथ ही साथ यहाँ बिजली का उत्पादन भी किया जाता है।

इस बांध का जब निर्माण करवाया जा रहा था उस समय जल भराव क्षेत्र को देखते हुए सिवनी जिले के कुछ ग्रामों को भी डूब क्षेत्र में शामिल किया गया था। इन डूब क्षेत्र के लोगों ने सत्तर के दशक तक बरगी बांध का विरोध किया किन्तु शासन की विकासोन्नमुखी सोच के आगे इनकी एक न चली।

सिवनी जिले के घंसौर विकासखण्ड के कुछ ग्रामों को विस्थापितों की सूची में शामिल किया जाकर इन्हें हटाया गया था। पायली क्षेत्र के कुछ ग्रामों के लोगों का पहले शिकारा बंजारी मार्ग पर बसाने का असफल प्रयास किया गया किन्तु बाद में इन्हें पायली रेस्ट हाउस के समीप ही बसा दिया गया। 44 साल में एक पीढ़ी प्रौढ़ावस्था की ओर अग्रसर होती है और यहाँ के विस्थापितों पर इन 43 सालों में क्या बीती होगी, इसे समझा जा सकता है।

इस खबर पर आश्चर्य होता है कि इन विस्थापितों के पास न तो जमीन है और न ही रोजगार के साधन। इस बात का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है कि ये विस्थापित जीवन यापन किस तरह किया करते होंगे। इन विस्थापितों के पास रोजगार के साधन नहीं होंगे तो निश्चित तौर पर इनमें से अधिकांश पलायन को मजबूर हो ही जायेंगे।

सिवनी जिले के भौगोलिक नक्शे को अगर देखा जाये तो जिला मुख्यालय से घंसौर क्षेत्र में पहुँचना सहज नहीं है, या तो लखनादौन या केवलारी होकर इस आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड तक पहुँचा जा सकता है। स्व.श्रीमति उर्मिला ंिसंह जैसी कद्दावर नेता इस विधानसभा का नेत्तृत्व कर चुकीं हैं फिर भी परिसीमन में विलोपित इस विधानसभा क्षेत्र के लोग आज विकास को तरस रहे हैं। एक समय था जब सरकारी कर्मचारी ही घंसौर को सिवनी का काला पानी कहकर भी संबोधित किया करते थे।

केंद्र में इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते के संसदीय क्षेत्र मण्डला में सिवनी जिले का घंसौर क्षेत्र आता है। इसके बाद भी उनके द्वारा भी विस्थापितों के मामले में किसी तरह का प्रयास न किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जायेगा।

घंसौर क्षेत्र में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पॉवर लिमिटेड के द्वारा कोल आधारित बिजली संयंत्र की संस्थापना करायी जा रही है। इसमें भी बरगी बांध के विस्थापितों के साथ दोयम दर्ज का व्यवहार किया जाकर उन्हें रोजगार न दिया जाना आश्चर्य का ही विषय माना जायेगा।

उम्मीद की जाना चाहिये कि पायली क्षेत्र का कुछ विकास किया जाये, अगर विकास होता है तो कम से कम इस तरह की योजनाओं को बनाया जाना चाहिये ताकि बरगी बांध के विस्थापितों को इसमें रोजगार के अवसर अवश्य प्रशस्त हों।