आबकारी अमला निष्क्रिय क्यों!

 

(शरद खरे)

जिले में पुलिस के द्वारा एक बार फिर अवैध शराब के परिवहन पर अपना ध्यान केंद्रित किया गया है। अवैध शराब पकड़ने में पुलिस को एक के बाद एक सफलता मिल रही है। पुलिस के जिम्मे अवैध शराब पकड़ने से इतर अन्य काम भी हैं। देखा जाये तो अवैध शराब के परिवहन पर अंकुश लगाने का काम आबकारी विभाग का है।

वर्षों से यही बात सामने आ रही है कि आबकारी विभाग के द्वारा अवैध शराब पकड़ने के नाम पर कच्ची शराब या लहान को पकड़ने की कार्यवाही को ही अंजाम दिया जाता रहा है। अंग्रेजी या देशी शराब के अवैध परिवहन या बिक्री पर अंकुश लगाने में आबकारी विभाग की दिलचस्पी ज्यादा दिखायी नहीं देती है।

याद पड़ता है कि दो दशक पहले तक आबकारी विभाग के द्वारा शराब के अवैध परिवहन को पकड़ा जाता था। इसमें ज्यादा मात्रा में अंग्रेजी शराब ही हुआ करती थी। उस दौर में आबकारी ठेकेदार के द्वारा आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर न केवल उन्हें वाहन मुहैया करवाया जाता था वरन अपने कारिंदों के जरिये उनकी दुकान के क्षेत्र में अवैध रूप से बिकने वाली शराब वाले स्थानों को भी चिन्हित कर शराब पकड़वायी जाती थी।

दो दशकों से सिवनी जिले में शराब ठेकेदार एक हो गये लगते हैं, या यूँ कहा जाये कि शराब ठेकेदारों ने अपना सिंडीकेट बना लिया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। इसके बाद से ही आबकारी विभाग के द्वारा अवैध रूप से बिकने या परिवहन की जाने वाली शराब पर ध्यान देना बंद कर दिया गया है।

जिले भर में गाँव-गाँव अवैध शराब बिक रही है। सरकार चाहे भाजपा की हो या काँग्रेस की, हर सरकार के कार्यकाल में अवैध शराब पर अंकुश लगाने की बातें सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की बैठकों तक ही सीमित रहती हैं। हाकिमों ने भी कभी आबकारी विभाग के आला अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुए उनसे यह नहीं पूछा है कि जब गाँव की महिलाएं या तो जनसुनवायी में या थाने में आवेदन देकर अवैध शराब की बिक्री की बातें करतीं हैं तब आबकारी विभाग क्यों निष्क्रिय बैठा दिखता है।

हाल ही में पुलिस के द्वारा एक बार फिर अवैध शराब के परिवहन को पकड़ा गया है। यह बात भी साफ हो रही है कि शराब किस दुकान से उठाकर ले जायी जा रही थी। कमोबेश हर शराब दुकान में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। यह बात जब मीडिया के जरिये सार्वजनिक हो चुकी है तब क्या यह आबकारी विभाग के अधिकारियों का दायित्व नहीं बनता है कि वे इस मामले में स्वसंज्ञान से ही सही, पुलिस से तालमेल बैठाते हुए सीसीटीवी फुटेज खंगालें और अगर शराब की पेटियां शराब दुकान से बाहर निकाली गयीं तो शराब दुकान के ठेकेदार से इसकी पतासाजी करे!

जाहिर है कुएं में ही भांग घुली हुई हो तो दोष किसे दिया जाये! संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि कम से कम वे ही इस संवेदनशील मामले में कार्यवाही करते हुए जिले के ग्रामीण अंचलों में खुलेआम बिकने वाली शराब पर प्रतिबंध लगाये जाने के मार्ग प्रशस्त करें ताकि युवा पीढ़ी को इस सामाजिक बुराई से बचाया जा सके।