अलाव बिना कैसे हो गुज़ारा!

 

(शरद खरे)

दिसंबर का दूसरा पखवाड़ा आरंभ हो गया है। सर्दी अपने पूरे शबाब पर है। 16 दिसंबर से पूस का माह भी आरंभ हो गया है। प्रौढ़ हो चुकी पीढ़ी को प्रेमचंद की कृति पूस की रात आज भी कण्ठस्थ ही होगी। पूस का माह साल भर में सबसे सर्द माना जाता है। इस लिहाज़ से स्थानीय निकायों की यह जवाबदेही है कि वे निर्धारित स्थानों पर अलाव की व्यवस्था अवश्य करें।

लगभग एक सप्ताह से सर्दी ने रफ्तार पकड़ ली है। शाम ढलते ही सर्द हवाएं नश्तर के मानिंद चुभती नज़र आती हैं। रात गहराते ही इन हवाओं का सामना करने में लोगों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अमूमन सर्दी का सितम 15 दिसंबर से 31 जनवरी के आसपास तक रहता है।

पता नहीं स्थानीय निकायों को सर्दी के मौसम में अलाव की व्यवस्था करने में पसीना क्यों आता है। जब सर्दी का सितम कम होगा तब नगर पालिका, नगर पंचायतों के द्वारा अलाव की व्यवस्था की जायेगी। अलाव के लिये लकड़ी की व्यवस्था पालिका या नगर परिषद के कर्णधारों को अपनी जेब से कतई नहीं करना है। इसकी व्यवस्था जनता के गाढ़े पसीने से संचित राजस्व से ही होना है।

शनिवार, रविवार को हुई बारिश के बाद हवाओें का रूख उत्तरी होने से तापमान में गिरावट दर्ज की गयी है। शाम होते ही सर्दी का सितम बढ़ने लगा है। दूबरे पर दो अषाढ़ की तर्ज पर सर्दी के मौसम में पानी गिरने से सर्दी का सितम और गहरा ही गया है। ऐसी परिस्थितियों में चौक चौराहों पर अलाव की व्यवस्था की जाना चाहिये।

इस बात पर आश्चर्य ही किया जाना चाहिये कि 24 वार्ड के चुने हुए पार्षदों के द्वारा भी अब तक अलाव की व्यवस्था के लिये पत्र नहीं लिखा गया है और न ही माँग की गयी है। नगर पालिका के द्वारा अलाव की व्यवस्था न किये जाने से अब लोग अलाव की लकड़ी के अभाव में लोग कचरा, पन्नी, पॉलीथिन आदि बीनकर जला रहे हैं जिससे प्रदूषण फैल रहा है और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

सर्दी में वैसे तो लोग घरों में दुबके रहते हैं पर बस स्टैण्ड, अस्पताल आदि ऐसे स्थान हैं जहाँ आवाजाही चौबीसों घण्टे बनी रहती है। यहाँ ऑटो-रिक्शॉ वालों के साथ ही साथ चाय वाले भी रात को अपनी सेवाएं देते रहते हैं। इतना ही नहीं रात की गश्त में पुलिस के सिपाही भी चौक-चौराहों पर अपनी सेवाएं देते रहते हैं।

हाड़ गलाने वाली ठण्ड में ये किस तरह अपने काम को अंजाम दे रहे होंगे यह सोचकर ही रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो जाती है। इन परिस्थितियों को देखकर आम आदमी हैरान परेशान हो सकता है पर नगर पालिका और नगर परिषद के चुने हुए प्रतिनिधि पता नहीं क्यों इस संवेदनशील मुद्दे में मौन ही साधे हुए हैं। सुनने में आया है कि पालिका के द्वारा दो तीन स्थानों पर अलाव की व्यवस्था की जा रही है, पर इस संबंध में अब तक आधिकारिक तौर पर पालिका के द्वारा कुछ भी नहीं कहा गया है।

जिले में बेलगाम अफसरशाही का आलम यह है कि नागरिक हर बात के लिये जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह की ओर ताकने पर मजबूर हैं, जबकि होना यह चाहिये कि संवेदनशील मामलों में विभागीय प्रमुखों को स्वसंज्ञान से ही पहल कर उनके द्वारा कार्यवाही की जाना चाहिये। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि अलाव के मसले पर कम से कम नगर पालिका और नगर परिषद से यह जवाब सवाल अवश्य करें कि अब तक इसकी व्यवस्था क्यों नहीं की गयी है!