चिकित्सकों का टोटा कब तक!

 

 

(शरद खरे)

लंबे समय से सिवनी जिले में चिकित्सकों की कमी की बात स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के द्वारा कहकर अपनी जवाबदेही पूरी कर ली जाती रही है। आखिर चिकित्सकों की कमी कैसे है? क्या मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, सिविल सर्जन सह अस्पताल अधीक्षक, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर चिकित्सक नहीं हैं? अगर हैं तो वे अपने दायित्वों के साथ ही साथ चिकित्सा का काम क्यों नहीं करना चाहते हैं?

अगर आपने हॉलीवुड की इंडिपेंडेंसडे फिल्म देखी हो तो आप ऊपर लिखी इबारत से सहमत होंगे। उस फिल्म में यूएस प्रेसीडेंट खुद पायलट थे और समय पड़ने पर उनके द्वारा फाईटर प्लेन उड़ाकर एलियन्स के दांत खट्टे किये जाते हैं। वह एक कहानी का अंश हो सकता है पर व्यवहारिक रूप से देखा जाये तो यह संभव है।

विषम परिस्थितियों में पुलिस विभाग में जिला प्रमुख कहलाने वाले पुलिस अधीक्षक भी मैदान में उतरकर अपने सिपाहियों के साथ कंधे से कंधा मिलकार स्थितियों से निपटते नजर आते हैं। सेना के कर्नल भी मैदान में लड़ाई लड़ते दिख जाते हैं। इस तरह स्वास्थ्य विभाग में प्रशासनिक पदों पर बैठे चिकित्सकों के द्वारा भी मरीजों को देखा जाना चाहिये।

पता नहीं मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर या सिविल सर्जन के पद को धारित करते ही चिकित्सकों के द्वारा चिकित्सा के काम को तिलांजलि क्यों दे दी जाती है। अगर देखा जाये तो रेसीडेंट मेडिकल ऑफिसर (आरएमओ) भी एक प्रशासनिक पद ही हैं पर आरएमओ के पद पर बैठने वाले चिकित्सक सदा ही अपनी सेवाएं अस्पताल में देते आये हैं।

सिविल सर्जन डॉ.वी.के. नावकर के द्वारा अवश्य ही मरीजों को देखने का कार्य जारी रखा गया है, किन्तु उनके अलावा प्रशासनिक पदों पर बैठे अन्य चिकित्सकों यहाँ तक कि मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.के.सी. मेश्राम के द्वारा भी शायद ही कभी मरीजों को देखा गया हो। इतना ही नहीं जिला परिवार कल्याण एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला टीकाकरण अधिकारी सहित अनेक प्रशासनिक पदों पर चिकित्सक ही प्रभारी बने बैठे हैं, इसके बाद भी उनके द्वारा मरीजों को देखने का जतन नहीं किया जाता है।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अधिकारी, सिविल सर्जन आदि भी अगर जिला अस्पताल में सुबह दो से तीन घण्टे मरीजों को दीगर सरकारी चिकित्सकों की तरह अगर देखें तो चिकित्सकों की कमी को काफी हद तक न केवल पूरा किया जा सकेगा वरन उनके उपस्थित रहने से अन्य सरकारी चिकित्सक भी समय पर ब्हाय रोगी विभाग में चौकस रहेंगे। रही बात शाम की पाली की तो शाम को तो कम ही चिकित्सक अस्पताल में अपनी सेवाएं देते हैं। अगर शाम को भी ये एक घण्टा अस्पतालों में दें तो शाम को भी अस्पताल में सारे चिकित्सक मौजूद रह सकते हैं।

इस मामले में सांसद विधायक अगर पहल करें तो स्थितियां काफी सुधर सकती हैं। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे ही अगर इस तरह की व्यवस्था सुनिश्चित कराते हैं तो निश्चित तौर पर यह देश-प्रदेश में एक नजीर बन जायेगा और इसका लाभ मरीजों को मिल सकेगा।