(लिमटी खरे)
जिला मुख्यालय सिवनी में जहाँ देखो वहाँ पानी के डबरे, पोखर भरे पड़े हैं। लोगों के घरों में भी पानी रूका हुआ है। कहा जाता है कि ठहरा हुआ पानी जानलेवा मलेरिया के लिये जिम्मेदार मच्छरों के लिये उपजाऊ माहौल तैयार करता है। जिला चिकित्सालय में पानी के डबरे निश्चित तौर पर इनके लिये संजीवनी का काम ही कर रहे हैं।
कम ही लोग जानते होंगे कि भारत की आज़ादी वाले साल यानी 1947 में मलेरिया जैसी घातक जानलेवा बीमारी ने देश में दस लाख से ज्यादा लोगों की इहलीला समाप्त कर दी थी। तब से 2018 तक बारह लाल से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आकर जान गंवा चुके हैं। चाहे महानगर हो या छोटा सा कस्बा लोग आज भी इसकी आगोश में हैं।
दरअसल मादा एनाफिलीज मच्छर जब इंसान को काटती है, तब वह एक विशेष तरह का वायरस मनुष्य के अंदर प्रविष्ठ करा देती है। यही वायरस मलेरिया को जन्म देता है। इस मादा मच्छर के पास इंसानी त्वचा को भेदने के लिये एक विशेष तरह का हथियार होता है। शोध बताते हैं कि इसके पास पतले डंक के अंत में सुईनुमा जुड़वा अस्त्र होता है।
यह मादा इंसान के शरीर में, इसे प्रविष्ट कराकर रक्त वाहनियों की तलाश करती है। नहीं मिलने पर यह क्रम जारी रखती है। नस मिलने पर यह मादा इंसान का कुछ रक्त चूस लेती है और फिर डंक को बाहर निकालने के पहले इसमें एक विशेष तरह का एंजाईम उसमें छोड़ देती है। शोधकर्त्ताओं की मानें तो यह मादा मच्छर दो दिन में ही 30 से 150 तक अण्डे देती है। इन अण्डों को सेने के लिये उसे मानव रक्त की आवश्यकता होती है।
मलेरिया का स्वरूप विश्व भर में इतना विकराल हो गया है कि इसे दुनिया की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा मिल गया है। कहा जाता है कि एड्स से 15 सालों में जितनी जानें जाती हैं, उतनी जान मलेरिया रोग के कारण महज़ एक साल में ही चली जाती हैं। मलेरिया का सबसे अधिक प्रकोप पाँच साल से कम के बच्चों पर होता है। औसतन हर साल दुनिया भर में 25 लाख से अधिक लोग इस भयानक बीमारी से अपने प्राण गवां देते हैं।
विश्व हेल्थ ऑर्गनाईजेशन (डब्ल्यूएचओ) का प्रतिवेदन साफ तौर पर बताता है कि मलेरिया के मरीज़ों की वृद्धि की दर हर साल 16 फीसदी आंकी गयी है। यह तथ्य निश्चित रूप से चिंता का विषय कहा जा सकता है। मलेरिया कितनी गंभीर बीमारी है यह इस बात से ही साफ हो जाता है कि हर साल विश्व भर में 02 अरब डालर से ज्यादा इस पर खर्च कर दिया जाता है। इतना ही नहीं मलेरिया को लेकर होने वाले शोधों पर हर साल 580 लाख डालर खर्च किया जाता है।
भारत सरकार इस रोग को लेकर कितनी संज़ीदा है, यह इस बात से साफ हो जाता है कि देश के स्वास्थ्य बजट का 25 फीसदी हिस्सा मलेरिया की रोकथाम के लिये सुरक्षित रखा जाता है। भारत सरकार के स्वास्थ्य महकमे द्वारा नब्बे के दशक के उत्तरार्ध तक राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम को पृथक से चलाया जाता था। इसके तहत देश के हर जिले में मलेरिया नियंत्रण की एक पृथक यूनिट हुआ करती थी।
शनैःशनैः मलेरिया की ईकाईयों में कार्यरत सरकारी कर्मियों को शिक्षकों की तरह ही जनसंख्या, पल्स पोलियो आदि के काम में बेगार के तौर पर उपयोग किया जाने लगा। इसके चलते देश भर में एक बार फिर मलेरिया बुरी तरह पैर पसारने लगा है। सरकार द्वारा चलाये जा रहे समग्र स्वच्छता अभियान में भी भ्रष्टाचार का दीमक पूरी तरह लग चुका है। मलेरिया फैलने की मुख्य वजह अज्ञानता मानी जा सकती है। अज्ञानता के चलते साफ सफाई न रख पाने तथा छोटे छोटे पानी के स्त्रोतों के कारण मच्छरों को प्रजनन का उपजाऊ माहौल मिल जाता है।
अब तक मलेरिया के लिये टीकाकरण की कोई वैक्सीन की खोज़ नहीं की जा सकी है। वैसे हाल ही में हुए शोध ने वैज्ञानिकों को खासा उत्साहित कर रखा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चिंपॉन्जी का वायरस मलेरिया वैक्सीन की खोज में अहम भूमिका निभायेगा। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक चिंपॉन्जी वायरस की खोज में तेजी से जुटे हैं, जिससे मलेरिया रोग के वैक्सीन की खोज़ की जा सकेगी।
सिवनी में बारिश का मौसम आ चुका है। एक बार हुई बारिश के बाद लगभग एक माह तक पानी के लिये लोग तरसे। इस दौरान जगह-जगह पानी भरा साफ दिखता रहा। एक माह में न जाने कितने मच्छरों को पैदा होने के लिये उपजाऊ माहौल तैयार भी हो चुका होगा।
याद नहीं पड़ता कि कभी सांसद-विधायकों के द्वारा मच्छर जनित रोगों के लिये जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त बैठक को बुलाया गया हो। सांसद-विधायक यह भूल जाते हैं कि उन्हें बेशकीमति जनादेश देकर जनता ने उन्हें अपना भाग्य विधाता चुना है। सांसद-विधायकों का यह दायित्व है कि वे रियाया के दुःखदर्द का पूरा-पूरा ध्यान रखें।
मलेरिया की रोकथाम के लिये एक बैठक का आयोजन 30 तारीख को किया जा रहा है। इस बैठक में महज़ रस्म अदायगी के अलावा शायद ही कुछ हो पाये। संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय निकालकर मलेरिया विभाग और स्थानीय निकायों की संयुक्त बैठक का आयोजन कर इस बात की जानकारी अवश्य लें कि इन विभागों के द्वारा मच्छरों के शमन के लिये किस तरह के उपाय किये गये हैं। इसके पहले वे अपने खुफिया तंत्र से जमीनी हकीकत की पतासाजी अवश्य कर लें ताकि उन्हें भी इस बात का भान हो सके कि अधिकारियों के द्वारा किस तरह की गलत बयानी की जा रही है।

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