(शरद खरे)
जिले में अनेक तरह की सरकारी सेवाओं को निजि हाथों में (आऊट सोर्स) कर दिया गया है। निजि कंपनियों की सेवाओं को संतोष जनक तो नहीं माना जा सकता है पर, सरकारी तंत्र की अपेक्षा निजि कंपनियों के द्वारा अपेक्षाकृत बेहतर तरीके से योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।
जिले भर में मच्छरों का प्रकोप बहुत ज्यादा देखा जा रहा है। यह स्थिति आज की नहीं है, इस तरह के हालात सालों से बने हुए हैं। प्रत्येक वर्ष यही रोना रहता है कि शहरी क्षेत्रों सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मच्छरों का प्रकोप लगभग साल भर रहता है। गर्मी हो, बरसात हो या फिर ठण्ड का मौसम, हर मौसम में मच्छरों की भिनभिनाहट से लोग जूझते ही दिखते हैं।
एक प्रश्न का उत्तर अब तक नहीं मिल सका है। हर साल राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर लाखों करोड़ों की इमदाद मच्छरों के शमन के लिये रसायनों और अन्य चीजों के रूप में भेजी जाती है, फिर इस तरह के रसायनों आदि का छिड़काव कहाँ और किसके द्वारा किया जाता है। अगर छिड़काव किया जाता है तो फिर मच्छर उत्पन्न कैसे हो जाते हैं, यह भी शोध का ही विषय है!
पिछले साल मच्छर जनित रोगों के कहर बढ़ने के बाद 126 ग्रमों को मच्छरों के आतंक वाले ग्राम घोषित किया गया था। सरकारी आंकड़ों पर अगर गौर किया जाये तो इस साल एक लाख 22 हजार 346 बुखार पीड़ितों की रक्त पट्टी की जाँच में महज़ 96 ही पाज़ीटिव मरीज़ मिले हैं, जो पिछले साल की तुलना में 201 कम हैं।
मलेरिया विभाग के द्वारा, जिले भर में बिना अधिकृत हुए चल रहे पैथॉलॉजी लेब्स में हुईं रक्त की जाँच के आंकड़े भी लगे हाथ देख लिये जाने चाहिये। आम धारणा बन चुकी है कि निजि तौर पर परीक्षण कराये जाने के परिणाम सरकारी स्तर पर कराये जाने वाले परिणामों से बेहतर आते हैं।
बरसात के मौसम में स्थान-स्थान पर पानी एकत्र हो जाता है जो मच्छरों के प्रजनन के लिये उपजाऊ माहौल निर्मित करता है। मलेरिया विभाग के द्वारा गंबूशिया मछलियों को पानी के एकत्र होने वाले स्थानों पर डाला जाता है ताकि ये मछलियां मच्छरों के अण्डों को पनपने न दें। इन मछलियों के लिये जिला चिकित्सालय परिसर में एक टांका भी बनाया गया है जहाँ इन्हें रखा जाता है। दो-तीन सालों से यह टांका भी खाली ही दिखता है।
मॉनसून पर आधारित बारिश का घोषित समय अब पूरा हो चुका है, माना जा सकता है। आने वाले दिनों में पानी अगर नहीं गिरा तो स्थान-स्थान पर एकत्र पानी में मच्छरों के अण्डे पनप सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो मच्छरों का आतंक तेजी से पसर सकता है। आने वाले दिनों में अगर मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू के मामले सामने आयें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
इस मामले को लेकर स्थानीय सांसदों और विधायकों ने अब तक अपना मौन नहीं तोड़ा है। इसका कारण क्या है, यह तो वे ही जानें पर संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से अपेक्षा की ही जा सकती है कि वे इस मामले में स्व संज्ञान से कार्यवाही सुनिश्चित करवाकर मच्छरों के शमन के मार्ग प्रशस्त करवायेंगे।

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