(शरद खरे)
नब्बे के दशक के बाद सिवनी जिले में नवाचार बहुत हुए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा नवाचार अस्पतालों को लेकर ही किये गये हैं। सिवनी में सबसे पहले अस्पताल पर नज़रें तत्कालीन जिलाधिकारी एम.मोहनराव की गयी थीं। उन्होंने अस्पताल के कायाकल्प की कवायद की थी।
प्रौढ़ हो रही पीढ़ी को याद होगा कि उस दौर में एम.मोहनराव शाम को पाँच बजे केन वाली कुर्सी पर उस स्थान पर जाकर बैठ जाते थे जहाँ वर्तमान में प्रसूति प्रभाग का नया भवन खड़ा हुआ है। उन्होंने यहाँ एक फव्वारा भी बनवाया था। उन्होंने जन सहयोग से अस्पताल के कुछ वार्ड के गद्दे बदलवाये थे। घटिया गुणवत्ता वाले गद्दे कुछ ही दिनों में खराब हो गये थे। उनकी यह कवायद उनके तबादले के बाद ठण्डे बस्ते के हवाले कर दी गयी थी।
इसके बाद डॉ.जी.के. सारस्वत के द्वारा अस्पताल को लेकर नवाचार किया गया था। उन्होंने अस्पताल के कॉरीडोर में खुले स्थान पर बांस की जाफरी लगवा दी थीं, क्योंकि यहाँ से मरीज़ों के परिजन और आगंतुकों के द्वारा पान गुटखा थूका जाता था, जिससे गंदगी होती थी। उन्होंने इस बारे में नहीं सोचा कि बांस की जाफरी से कॉरीडोर को बंद करने से ताजी हवा कैसे आयेगी! उनके तबादले के बाद ये जाफरी हटवा दी गयी थीं।
याद पड़ता है कि मोहम्मद सुलेमान के द्वारा जिला अस्पताल को बेहतर बनाने के लिये सार्थक पहल की गयी थी। उनके द्वारा रोगी कल्याण समिति को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाने की गरज से अस्पताल में रोगी कल्याण समिति की 110 दुकानें बनवायीं गयीं और उन्हें महंगी दरों पर बेचा गया। इससे हुई आय को उनके द्वारा रोगी कल्याण समिति के कोष में जमा करवाया गया था।
मोहम्मद सुलेमान की सोच को सकारात्मक इसलिये माना जा सकता है क्योंकि अस्पताल के संचालन में रोगी कल्याण समिति की महती भूमिका होती है। हर माह आने वाले किराये से रोगी कल्याण समिति के कोष में हर माह ही बढ़ौत्तरी की उम्मीद उनके द्वारा की गयी थी। यह हुआ भी, पर रोगी कल्याण समिति की दुकानों के किराये और बेचे जाने पर हुई आय का क्या किया गया, इस बारे में अस्पताल प्रशासन ने कभी भी नागरिकों को बताने की जहमत नहीं उठायी।
वर्तमान में चिकित्सकों और पेरामेडिकल स्टॉफ की कमी से जूझते अस्पताल को सुंदर बनाने की पहल की जा रही है। इसके लिये अस्पताल मित्र योजना का आगाज़ किया गया है। अस्पताल में वार्ड ब्वाय और स्वीपर्स की कमी किसी से छुपी नहीं है। पूर्व जिलाधिकारी गोपाल चंद्र डाड के द्वारा रोगी कल्याण समिति की मद से ही चार माह तक अस्पताल में सफाई कर्मियों को वेतन दिया गया था। इस लिहाज़ से यह माना जा सकता है कि वार्ड ब्वाय और स्वीपर्स की भर्त्ती रोगी कल्याण समिति के जरिये की जा सकती है।
हाल ही में लखनादौन पुलिस के द्वारा लखनादौन के सिविल अस्पताल को अघोषित तौर पर गोद लिया जाकर वहाँ मरीज़ों और उनके परिजनों के हितों के लिये काम किये जा रहे हैं। सकारात्मक सोच के धनी लखनादौन थाना प्रभारी महादेव नागोतिया की इस पहल की चहुंओर प्रशंसा हो रही है। लोग उन्हें और उनकी इस पहल से जुड़ रहे लोगों को ही असली अस्पताल मित्र बताने से नहीं चूक रहे हैं।
देखा जाये तो लखनादौन में अस्पताल को लेकर चल रही मुहिम से सबक लेने की आवश्यकता है। इस तरह की मुहिम अगर समूचे जिले के अस्पतालों में चल जाये तो लोगों का सीधा जुड़ाव अस्पताल से होगा, वे अस्पताल की साफ सफाई के लिये जागरूक भी होंगे और मरीज़ों को सुविधा भी मिल सकेगी। सच ही है यह सब कुछ जिले की जनता के लिये ही किया जा रहा है और जनता की नब्ज़ थामना अफसरान का पहला दायित्व है। इस काम में महादेव नागोतिया ने बाजी मार ली है, क्योंकि उन्होंने लोगों के अंदर सेवा का जज्बा उत्पन्न करने में काफी हद तक सफलता भी हासिल कर ली है।

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