अशुद्ध पेयजल कर रहा बीमार!

 

 

(शरद खरे)

सिवनी जिले के अस्पतालों और चिकित्सकों के पास जाने वाले मरीज़ों का अगर सर्वे कराया जाये तो निश्चित तौर पर जिले में पेट के रोगी बहुतायत में मिलेंगे। पेट की बीमारी अशुद्ध जल के सेवन से होती है। स्थानीय निकायों की यह जवाबदेही है कि वे लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया करवायें।

सिवनी शहर में भीमगढ़ जलावर्धन योजना के बाद लगभग पाँच सालों से नवीन जलावर्धन योजना का कार्य प्रचलन में है। इन दोनों ही जलावर्धन योजनाओं में पेयजल को शुद्ध करने के लिये लाखों करोड़ों रूपयों की फिटकरी और ब्लीचिंग पाउडर को खरीदा जाता है। इसके बाद भी कभी मटमैला तो कभी बदबूदार पानी लोगों के घरों में आता है।

सिवनी जिले में समय-समय पर स्थानीय निकायों के ंद्वारा किये जाने वाले पेयजल प्रदाय की जाँच लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के द्वारा की जानी चाहिये। इतना ही नहीं इस जाँच रिपोर्ट को सार्वजनिक किये जाने के साथ ही जनता को यह बताना चाहिये कि वे किस तरह के पानी का सेवन कर रहे हैं।

चिकित्सकों के अनुसार अधिकांश बीमारियों की जड़ अशुद्ध पेयजल ही होता है। पीएचई विभाग के पास हर साल भारी मात्रा में पेयजल को शुद्ध करने के लिये दवा आती है। इस दवा को निःशुल्क बांटने के निर्देश भी हैं, पर इसके व्यापक प्रचार-प्रसार के अभाव में लोगों को इसका पता नहीं चल पाता है।

इसके साथ ही साथ शालाओं में भी किस तरह का पेयजल पानी की टंकियों से प्रदाय किया जा रहा है इस बारे में जाँच करने की फुर्सत संबंधित विभाग को नहीं है। आज के समय में विद्यार्थियों के हाथों में बस्ते के अलावा पानी की बोतल भी दिखायी देती है। याद पड़ता है कि नब्बे के दशक तक विद्यार्थियों के हाथों में सिर्फ बस्ते हुआ करते थे, उस दौरान वे शाला में उपलब्ध पानी का ही सेवन करते थे और निरोगी रहा करते थे। जाहिर है अब पानी की शुद्धता पहले जैसी नहीं रह गयी है। जिला मुख्यालय सहित गाँव-गाँव में बनी पानी की टंकियों, शालाओं की पानी की टंकियों की सफाई कब से नहीं हुई है, यह बात भी शायद ही कोई जानता हो।

बोतल बंद पानी और वाटर प्यूरीफायर की मार्केटिंग करने वाली कंपनियों के द्वारा पानी की अशुद्धि को लेकर तरह-तरह के विज्ञापन दिखाये जाते हैं। आज से दो तीन दशक पहले तक लोग सफर पर जाते समय भी साथ में पानी नहीं ले जाते थे। अगर ले भी जाते थे तो छागल या मटकों को रास्ते में पड़ने वाले जल स्त्रोतों या नलों से भर लिया करते थे। उस दौर में प्लास्टिक की बॉटल्स का चलन नहीं होने के कारण कांच की बोतल ले जाने से लोग कतराते ही थे।

सीएम हेल्प लाईन में अशुद्ध पानी की शिकायत करने पर स्थानीय निकायों के द्वारा पाईप लाईन में सुधार किया जा रहा है का रटा रटाया जवाब दे दिया जाता है। यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर पाईप लाईन में सुधार कब तक किया जायेगा! आखिर ये पाईप खराब क्यों हो रहे हैं!

इस मामले में चुने हुए प्रतिनिधियों का मौन भी आश्चर्य जनक ही माना जायेगा। संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे जिले में किस गुणवत्ता वाले पानी का प्रदाय हो रहा है इसकी जाँच नियमित अंतराल में कराये जाने के लिये लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को निर्देशित करने के साथ ही साथ इसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक करवायें। अगर अशुद्ध पेयजल का प्रदाय किया जा रहा है तो इसके लिये दोषियों पर कार्यवाही होना चाहिये।

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