खतरों के गति अवरोधक!

 

(शरद खरे)

सिवनी शहर में जहाँ जिसका मन आया उस ठेकेदार या नगर पालिका के कारिंदों ने गति अवरोधक बना दिये हैं। इन गति अवरोधकों के बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश का पालन न होना साफ दिखायी पड़ रहा है। अनेग स्थानों पर पुलियों के ऊपर का हिस्सा इस तरह बना दिया गया है मानो वह भी गति अवरोधक हो। इन गति अवरोधकों से टकराकर वाहनों का निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो रहा है। ऐसा नहीं कि इसकी जानकारी जिला प्रशासन के आला अधिकारियों को न हो। बावजूद इसके इस दिशा में कोई भी पहल न किया जाना, आश्चर्यजनक ही माना जायेगा।

पुलिस मुख्यालय द्वारा 14 सितंबर 2013 को आदेश जारी कर गति अवरोधकों के बारे में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे। इसमें उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका 9045/06 का उल्लेख कर हाई कोर्ट के ऑर्डर्स का हवाला दिया गया था। आदेश में कहा गया था कि संबंधित पुलिस अधीक्षक के क्षेत्र में जितने भी गति अवरोधक बने हैं, उनका परीक्षण करवाया जाये कि क्या वे गति अवरोधक इंडियन रोड्स काँग्रेस द्वारा बनाये गये मानकों के आधार पर बनाये गये हैं? अगर नहीं बने हैं तो उन्हें तत्काल ही संबंधित विभाग जो सड़क के लिये जिम्मेवार है (पीडब्ल्यूडी, नगर पालिका, एनएचएआई इत्यादि) से मिलकर हटवाया जाये एवं अगर आवश्यक है तो उनके स्थान पर इंडियन रोड्स काँग्रेस के मानकों के आधार पर गति अवरोधक बनवाये जायें।

पत्र में स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि भविष्य में (16 सितंबर 2013 के उपरांत) जो भी गति अवरोधक बनवाये जाते हैं, उन्हें इंडियन रोड्स काँग्रेस के मानकों के आधार पर ही बनवाया जाये। गति अवरोधक जहाँ भी बनाये जायें, उसके दोनों ओर उपर्युक्त चेतावनी बोर्ड भी लगाये जायें (एसपी बंग्ले से जीएडी कॉलोनी वाले मार्ग पर चेतावनी बोर्ड नहीं हैं)। इतना ही नहीं गति अवरोधक पर दृष्यता बढ़ाने के लिये काले-सफेद पेंट (ल्यूमिनस) से पट्टियां बनवायी जायें अथवा केट्स आई भी लगायी जायें।

विडंबना ही कही जायेगी कि उच्च न्यायालय के निर्देशों के प्रकाश में, पुलिस मुख्यालय के पत्र को भी जिले में ज्यादा तवज्जो नहीं दी गयी है। एसपी बंग्ले से जीएडी कॉलोनी, जठार अस्पताल से हाउसिंग बोर्ड पहुँच मार्ग सहित अनेक मार्ग ऐसे हैं जहाँ स्पीड ब्रेकर्स पर वाहनों का निचला तल टकराना तय ही है। पता नहीं क्यों जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, नगर पालिका प्रशासन सहित अन्य जिम्मेदार विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

याद पड़ता है कि बालाघाट में एक स्पीड ब्रेकर पर वाहन क्षति ग्रस्त होने पर अधिवक्ता महेंद्र देशमुख ने उपभोक्ता फोरम में वाद दायर कर हर्जाना लिया था। अगर सिवनी में भी कोई हर्जाना लेने उपभोक्ता फोरम की शरण में जाता है और उसे हर्जाना देने के आदेश होते हैं तब भी सरकारी नुमाईंदों का क्या? पैसा तो सरकार के खाते से ही जाने वाला है। जिला प्रशासन से जनापेक्षा है कि काल का स्वरूप बनने वाले इन गति अवरोधकों को मानक आधार पर समय सीमा में बनवाने के आदेश जारी करे।