खेल के मैदान का उपयोग!

 

(शरद खरे)

जिला मुख्यालय में खेल के मैदानों का अभाव साफ परिलक्षित होता है। हॉकी के लिये एस्ट्रोटर्फ मैदान है तो फुटबॉल के लिये स्टेडियम। इसके अलावा पॉलीटेक्निक मैदान को ही खेल का मैदान माना जा सकता है। मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला में भी एक मैदान है।

एक समय था जब शहर के शैक्षणिक संस्थानों में खेल के मैदान हुआ करते थे। कोतवाली के सामने अभ्यास शाला के नाम से मशहूर वर्तमान की नेताजी सुभाष चंद्र बोस शाला के बाजू में एक विशाल मैदान हुआ करता था। अब इस मैदान का आकार बहुत ही छोटा हो चुका है।

मंगलीपेठ में तिलक स्कूल का मैदान, भैरोगंज में डिग्री कॉलेज़ और उस समय के नॉर्मल स्कूल का मैदान भी खिलाड़ियों के लिये पसंदीदा स्थान होते थे। पुलिस लाइन का मैदान हॉकी के लिये मुफीद हुआ करता था तो क्रिकेट के लिये जिला चिकित्सालय में होमगाडर््स मैदान हुआ करता था।

कालांतर में सारे के सारे खेल के मैदानों का आकार सिकुड़ता चला गया। इनमें से अनेक खेल के मैदान तो अब इतिहास बन चुके हैं। आज की युवा पीढ़ी को शायद ही पता हो कि जिला चिकित्सालय में जिस स्थान पर नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र बना है उस स्थान को होमगाडर््स मैदान कहा जाता था और यहाँ बारहों महीने या तो क्रिकेट का अभ्यास होता था या प्रतियोगिताएं चला करती थीं।

सरकारी नियम कायदों के हिसाब से शाला हो या महाविद्यालय हर किसी संस्थान के पास अपना खेल का मैदान होना आवश्यक है। आज शहर में कुकुरमुत्ते के मानिंद शालाएं हैं पर इनमें कितनों के पास खेल के मैदान हैं, इसकी जाँच करने की फुर्सत जिम्मेदार अधिकारियों को शायद नहीं है।

पिछली विधान सभा में प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र में एक खेल के मैदान को बनाये जाने की घोषणा की गयी थी। सिवनी में चार विधान सभाएं हैं। इन चारों विधान सभाओं में कहाँ-कहाँ खेल के मैदान का निर्माण कराया गया है इस बारे में भी शायद ही कोई जानता हो।

इक्कीसवीं सदी के आरंभ में विजन 20-20 का राग अलापा गया था। लीजिये 2020 का मार्च माह भी आरंभ हो गया है। इसके बाद भी अब तक खेल के मैदानों के मामले में भी सिवनी जिला समृद्ध नहीं हो पाया है।

जिला मुख्यालय के पॉलीटेक्निक मैदान में खेलकूद कम सरकारी आयोजन ज्यादा होते हैं। सरकारी आयोजन अगर करना है तो इसके लिये किसी अन्य स्थान को चिन्हित किया जाना चाहिये। यहाँ जब भी सरकारी आयोजन होते हैं उसके बाद यह मैदान गंदगी से सराबोर हो जाता है।

जिले के दो सांसदों और चारों विधायकों ने भी इस मामले में किसी तरह का कदम नहीं उठाया है। प्रमुख सियासी दल काँग्रेस और भाजपा की जिला और नगर ईकाईयां भी इस मामले में पूरी तरह मौन ही हैं। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से ही जनापेक्षा की जा सकती है कि वे ही इस मामले में स्वसंज्ञान से कदम उठाते हुए जिला मुख्यालय में खेल के मैदानों के बारे में कुछ करें!

 

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