(शरद खरे)
लगभग डेढ़ दो दशकों से सिवनी में अजीब सी परंपरा का आगाज़ होता दिख रहा है। सरकारी विभागों में समय-समय पर निर्देश तो जारी हो जाते हैं पर उनका पालन सुनिश्चित हो रहा है अथवा नहीं, इस बारे में देखने-सुनने की फुर्सत न तो आला अधिकारियों को है और न ही जनता के चुने हुए नुमाईंदों को।
बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों तक संचार क्रांति (कंप्यूटर, ईमेल आदि) के परवान न चढ़ पाने के चलते सरकारी कार्यालयो में जारी होने वाले दिशा निर्देशों को साईक्लोस्टाईल कर बांटा जाता था। इसमें एक स्टेंसिल काटकर साईक्लोस्टाईलिंग मशीन से उसकी मनचाही कॉपी निकाल ली जाती थी। इस दौर में समय-समय पर जारी होने वाले निर्देशों में तिथि के कॉलम को खाली छोड़ दिया जाता था ताकि भविष्य में अगर इस तरह के दिशा निर्देश जारी करने हों तो उसी स्टेंसिल का दुबारा उपयोग कर लिया जाये।
ठीक इसी तर्ज पर इक्कीसवीं सदी में जारी होने वाले निर्देशों को कंप्यूटर में टाईप कर रख लिया जाता है। समय-समय पर इनमें तिथि को बदलकर निर्देश जारी किये जा रहे हैं। अनेक बार तो मीडिया को भेजी जाने वाली एमएस वर्ड की फाईल में पूरे के पूरे आदेश एक साथ मिल जाते हैं, जिससे यही प्रतीत होता है कि सरकारी कार्यालयों में साईक्लोस्टाईलिंग मशीन का स्थान कंप्यूटर ने अवश्य ले लिया हो पर व्यवस्थाएं आज भी वही पुरानी ही तर्ज पर चल रही हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में यह सबसे ज्यादा दिखायी दे रहा है। तीन चार सालों से मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी या सिविल सर्जन चाहे जो भी पदस्थ हो जायें पर निश्चित कालांतर में विभाग के आला अधिकारियों के द्वारा दिशा निर्देश जारी कर जन संपर्क विभाग के जरिये इसे प्रसारित करवा दिया जाता है।
चार पाँच सालों से अक्टूबर से दूसरे साल जनवरी के बीच एक निर्देश अवश्य जारी किया जाता है, जिसमें जिले के सभी चिकित्सकों को निर्देश दिये जाते हैं कि वे जिस भी पैथी में उपचार कर रहे हों, उसकी डिग्री और अन्य प्रमाण पत्र निश्चित समय सीमा में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अथवा सिविल सर्जन कार्यालय में जमा करवायें।
इसके बाद विभाग मानो कुंभकर्णीय निद्रा में चला जाता है। इसके बाद अगले साल तक विभाग के द्वारा यह बताने की जहमत नहीं उठायी जाती है कि निश्चित समय सीमा में कितने चिकित्सकों के द्वारा सीएमएचओ या सीएस के निर्देश के बाद अपने-अपने प्रमाण पत्र की छाया प्रति जमा करवायी गयी है। जाहिर है इस तरह के निर्देश जारी करने के पीछे अधिकारियों की मंशा में कहीं न कहीं खोट ही रहती होगी।
इस मामले में काँग्रेस और भाजपा सहित जिले के सांसद, विधायक एवं अन्य जनप्रतिनिधियों का मौन भी समझ से परे है। इनके चुप रहने से यह भी प्रतीत होता है कि अधिकारियों की मंशा को इनका भी मौन समर्थन ही रहता होगा, वरना क्या कारण है कि अब तक इनके द्वारा भी किसी तरह की आवाज इस संबंध में बुलंद नहीं की गयी है। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि वे इस संवेदनशील मामले में स्व संज्ञान से पहल करते हुए कार्यवाही अवश्य करायेंगे, अन्यथा यही माना जायेगा कि अधिकारियों के द्वारा दिये जाने वाले निर्देश महज़ रस्म अदायगी के लिये ही . . .!

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