(शरद खरे)
प्रियदर्शनी के नाम से सुशोभित इंदिरा गाँधी जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक में जब-तब खून की कमी की खबरें आम हो चलीं हैं। इसके साथ ही साथ आये दिन रक्तदान शिविरों के अलावा सिवनी ब्लड डोनर जैसी संस्थाओं की पहल पर स्वैच्छिक रक्तदान की खबरें भी मीडिया की सुर्खियां बनी रहती हैं। शल्य क्रिया में रक्त की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है।
सिवनी में जिला चिकित्सालय सहित निजि चिकित्सालयों में कितनी शल्य क्रियाएं प्रतिदिन हो रही हैं, उस हिसाब से सालाना औसत निकाला जाना चाहिये। इसके अलावा रक्त दाताओं के द्वारा कितना खून दिया गया एवं ब्लड बैंक के द्वारा कितना रक्त मरीज़ों को दिया गया, इसका कोई हिसाब-किताब न होने के कारण गफलत की स्थिति बनना स्वाभाविक ही है।
यक्ष प्रश्न यह है कि साल भर में आयोजित होने वाले रक्त दान शिविरों के बाद भी अस्पताल में जमा कराया गया खून चला कहाँ जाता है? निज़ि चिकित्सालयों में ब्लड बैंक नहीं हैं, जाहिर है जो भी रक्त निकालकर सुरक्षित रखा जाता है, वह जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक में ही रखा जाता है।
पिछले साल तक कुछ-कुछ समय के अंतराल पर ब्लड बैंक में कुछ दलालों को भी युवाओं ने पकड़कर पुलिस के हवाले किया जाता रहा है। यह सब कुछ तब हो रहा है जब जिला चिकित्सालय के वार्ड ओपीडी और परिसर सीसीटीवी एवं सफाई सुरक्षा के नाम पर लाखों रुपये से ज्यादा की राशि खर्च की जा रही है।
जिला चिकित्सालय के समस्त चिकित्सकों के द्वारा हर साल एक शपथ पत्र भरकर दिया जाता है कि वे अपने निवास के अलावा अन्य कहीं भी सेवाएं नहीं देंगे। अगर निज़ि चिकित्सालयों में लगे सीसीटीवी फुटेज सहित चौक-चौराहों पर पुलिस के द्वारा लगाये गये सीसीटीवी के फुटेज ही खंगाल लिये जायें तो पता चल जायेगा कि जिला चिकित्सालय में पदस्थ कौन-कौन से चिकित्सक अपने आवास के बाहर निज़ि तौर पर चिकित्सा का काम कर रहे हैं।
तत्कालीन जिला कलेक्टर भरत यादव और धनराजू एस. के कार्यकाल में जिला मुख्यालय में रक्तदान के लिये बकायदा कैलेण्डर बनाया गया था। इस कैलेण्डर के हिसाब से जिला चिकित्सालय में खून की कमी शायद नहीं होना चाहिये पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जिस दिन सोशल मीडिया व्हाट्सएप्प पर रक्त की आवश्यकता से संबंधित अपील न की जाती हो। इसके बाद से रक्तदान का कैलेण्डर बनाये जाने की प्रथा मानो समाप्त ही हो गयी है।
एक बात तय है कि व्यवस्था में सुधार कोई भी जिलाधिकारी करना चाहता है किन्तु वर्षों से मठाधीश के मानिंद बैठे अधिकारियों के द्वारा अपने हितों के हिसाब से जिलाधिकारियों के सामने बातें गढ़ दी जाती हैं, जिससे जिलाधिकारियों की मूल मंशा ही गौड़ हो जाती है।
संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि उनके द्वारा जिला चिकित्सालय के रक्तदान के कैलेण्डर का पालन करवाया जाये, इसके साथ ही साथ किसी उप जिलाधिकारी को जिला चिकित्सालय का ऑफिसर इंचार्ज बनाया जाकर अस्पताल प्रशासन की जवाबदेही तय की जाये ताकि मरीज़ों को इसका लाभ मिल सके।

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