कौन करेगा जाँच की माँग!

 

 

हम फिर शर्मिंदा हुए . . . 03

(लिमटी खरे)

सुश्री विमला वर्मा सिवनी के लिये विकास का पर्याय रहीं हैं, इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं प्रतीत होती है। आज़ादी के बाद सिवनी में विकास की जो भी किरणें प्रस्फुटित हुई हैं उसकी संवाहक पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा ही रहीं हैं। विमला वर्मा के पहले और उनके बाद के सियासतदारों के कामों का अगर आँकलन किया जाये तो बाकी के खाते में उपलब्धियों के नाम पर रिक्तता ही दिखती है। सिवनी की झोली में उनके कार्यकाल के बाद जो भी आया है वह केंद्र और प्रदेश सरकार के नीतिगत मामलों के चलते ही आया है।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अगर विमला वर्मा न होतीं तो सिवनी का जिला अस्पताल इतना वृहद नहीं होता। आज अगर वे होतीं और इस अस्पताल की दुर्दशा देखतीं तो शायद उन्हें बहुत दुःख होता। वे लंबे समय से अस्वस्थ्य थीं। संभव है जिला अस्पताल की दुरावस्था से वे अनभिज्ञ ही रहीं हों।

सुश्री विमला वर्मा ने अपनी ही सौगात जिला चिकित्सालय में अंतिम साँस ली। उन्हें भर्त्ती कराने के बाद चिकित्सक बुलवाने में जिला काँग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राज कुमार खुराना को भी काफी संघर्ष करना पड़ा। जिला काँग्रेस अध्यक्ष ने अपनी आँखों से उस रात अस्पताल की दुरावस्था देखी ही होगी।

विमला वर्मा को देखने आये चिकित्सक ने भी औपचारिकाएं पूरी करते हुए वहाँ से रवानगी डाल दी। कितनी शर्म की बात है कि केंद्रीय स्तर की एक नेता को उनके पाँच छः परिजन खुद ही स्ट्रेचर पर लिटाकर स्ट्रेचर धकेलते ले गये। इस स्ट्रेचर को जिला काँग्रेस अध्यक्ष राज कुमार खुराना (जैसा कि एक वीडियो में दिख रहा है) के द्वारा भी धकेला गया। क्या इसके बाद भी जिला अस्पताल को लेेकर चल रहे प्रयोगों पर विराम लगवाने का साहस जुटा पायेंगे जिला काँग्रेस अध्यक्ष राज कुमार खुराना!

एक वरिष्ठ नेता से चर्चा के दौरान उनके द्वारा अपने आप को असहाय दर्शाते हुए कहा गया कि स्वास्थ्य विभाग में किसे प्रभारी अधिकारी बनवा दिया जाये! कौन है यहाँ जो ठीक से काम करते हुए अस्पताल की व्यवस्थाएं दुरूस्त करवा सके! उनसे चर्चा के दौरान हमने उन्हें एक वाकया सुनाया।

सालों पहले एक बार एक निजि शाला के द्वारा की जा रही अनियिमितताओं की लिखित शिकायत तत्कालीन जिलाधिकारी के पास लेकर कुछ सभ्रांत लोग गये। जिलाधिकारी के द्वारा इस शिकायत देखकर कहा गया कि इस शिकायत पर बाद में चर्चा करेंगे पहले आप यह बतायें कि इस जिले में उक्त (जिस शाला की शिकायत की गयी थी) शाला के अलावा कौन सी शाला है जो गुणवत्ता युक्त शिक्षा दे रहा हो!

जिलाधिकारी की बात सुनकर हमने साथ गये लोगों से कहा कि जिलाधिकारी महोदय के द्वारा इस समस्या का हल निकाल दिया गया है। हमने जिलाधिकारी महोदय से शिकायत वापस लेते हुए एक ही प्रश्न किया कि क्या एक जिलाधिकारी के द्वारा गुणवत्ता युक्त शिक्षा के नाम पर किसी शाला को क्या लूटने की छूट प्रदाय की जायेगी!

जिलाधिकारी को बात में दम लगा। उनके द्वारा इस शिकायत की जाँच करवायी गयी। इस मामले को बताते हुए हमने उक्त नेता से यही कहा कि अगर कोई योग्य अधिकारी नहीं मिल पा रहा है तो जो प्रभारी बने बैठे हैं उनके द्वारा दिखायी जाने वाली कथित अक्षमता को क्या बर्दाश्त किया जाता रहेगा!

कहने का तात्पर्य यह है कि शासन प्रशासन के द्वारा नियम कायदों के हिसाब से ही कामों का संचालन और संपादन किया जाना चाहिये। यह शासन प्रशासन के नमुाईंदों का नैतिक दायित्व है और इसी बात के लिये उन्हें हर महीने की एक तारीख को पगार भी मिलती है।

सुश्री विमला वर्मा के निधन के पूर्व फरवरी माह में जिला काँग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष जकी अनवर खान का निधन इसी आईसीसीयू में हुआ था। प्रदेश में काँग्रेस की सरकार है। जिला काँग्रेस के नेताओं ने जकी साहब को उपचार न मिलने के चलते उनके निधन के आरोप लगाये थे।

इस मामले में मुख्यमंत्री से शिकायत भी हुई थी। मुख्यमंत्री कार्यालय से इसकी जाँच के निर्देश भी हुए थे। जिले में बेलगाम अफसरशाही के घोड़े किस कदर दौड़ रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मई माह का दूसरा पखवाड़ा आरंभ हो गया है और यह जाँच अभी भी मुकम्मल नहीं हो पायी है।

इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा का निधन इसी गहन चिकित्सा ईकाई में हुआ। इस गहन चिकित्सा ईकाई में नियमानुसार आठ-आठ घण्टे ड्यूटी देने वाले तीन चिकित्सक होना चाहिये। आलम यह है कि रात को बारह बजे एक चिकित्सक को बुलाने में डीसीसी प्रेसीडेंट को भी पसीना आ गया था। इसके बाद भी चिकित्सकों की संख्या बढ़ाने की बजाय अस्पताल में ढाई करोड़ रूपये की लागत से नये काम करवाने का ताना-बाना बुना जा रहा है, जिसके बारे में जिला काँग्रेस अध्यक्ष राज कुमार खुराना को भी शायद ही पता हो! विमला वर्मा के उपचार में क्या लापरवाही हुई? उनके पार्थिव शरीर को ले जाने के लिये स्ट्रेचर उनके परिजनों को क्यों धकेलना पड़ा? क्या कारण था कि उनके पार्थिव शरीर को सरकारी की बजाय निजि एंबुलेंस में ले जाना पड़ा? ऐसे अनेक प्रश्नों पर जाँच की माँग कौन करेगा? यह यक्ष प्रश्न अभी भी जस का तस ही खड़ा हुआ है . . .!

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