कौन लेगा सरकारी एंबुलेंस की सुध!

 

 

(शरद खरे)

जिले भर में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह पटरी से उतर चुकी हैं। स्वास्थ्य विभाग में अधीक्षण (सुपरविजन) के लिये एक मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, दो जिला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण अधिकारी, आठ विकास खण्ड चिकित्सा अधिकारी सहित जिला अस्पताल में सिविल सर्जन के पद सृजित हैं। इन सभी का दायित्य है कि मरीजों को सरकारी स्तर पर मिलने वाली सुविधाओं को उन तक निर्विघ्न पहुँचाया जाये। देखा जाये तो इनमें मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कमांडिग ऑफिसर के रूम में काम करते हैं।

जिले भर में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली किसी से छुपी नहीं है। अस्पताल में सफाई और सुरक्षा का काम निजि एजेंसियों को आऊट सोर्स कर दिया गया है। इसके बाद भी न तो अस्पतालों में सफाई दिखती है और न ही सुरक्षा व्यवस्था ही पुख्ता दिख रही है। अस्पताल में मरीजों से मिलने के लिये सुबह और शाम एक-एक घण्टे का समय निर्धारित है। इसके बाद भी चौबीसों घण्टे अस्पतालों में मरीजों को देखने लोग पहुँचते हैं। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि आधी रात को नशैलों के द्वारा अस्पताल में इस तरह चहल कदमी की जाती है मानो अस्पताल नहीं बगीचा हो।

अस्पतालों में कितनी दवाएं आ रही हैं कितनी मरीजों को बांटी जा रही है। सफाई ठेकेदारों के द्वारा कितनी कंज्यूमेवेबल सामग्री खरीदी जा रही है, कितने का उपयोग किया जा रहा है इस बारे में भी शायद ही कोई जानता हो। दुर्गंध मारते अस्पतालों को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि इन अस्पतालों में फिनायल का उपयोग कितनी मात्रा में किया जाता है। जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा बीते दिनों अस्पताल का औचक निरीक्षण किया गया था। उन्हें भी दुर्गंध मारते शौचालयों की शिकायत से दो चार होना पड़ा था। आलम यह है तो ठेकेदार को किस बात का भुगतान कर रहा है स्वास्थ्य विभाग!

इसके अलावा मरीजों को लाने ले जाने के लिये जिला अस्पताल सहित अन्य अस्पतालों में कितनी एंबुलेंस हैं इस बारे में कहीं भी स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। 108 एंबुलेंस के जरिये घायलों और बीमारों को अस्पताल लाया जाता है। अस्पताल से अगर किसी मरीज को कहीं ले जाना हो तो मरीज के परिजन निजि एंबुलेंस से भाव ताव करते नजर आते हैं। शव ले जाने के लिये भी लोगों को निजि एंबुलेंस के लिये ही भटकना पड़ता है। यहाँ तक कि हाल ही में पूर्व केद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा के निधन के बाद उनकी पार्थिव देह को भी निजि एंबुलेंस में भी अस्पताल से उनके निवास ले जाना पड़ा था।

जिले की स्वास्थ्य सुविधाएं पटरी पर हों इसकी नैतिक जवाबदेही सांसद विधायकों की है। इसका कारण यह है कि जनता के द्वारा इन्हें जनादेश दिया है और उस जनादेश का सम्मान करना इन जनप्रतिनिधियों की नैतिक जवाबदारी है। सासंद विधायकों को चाहिये कि वे भी महीने में कम से कम एक बार तो जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं की समीक्षा करें।

जिलाधिकारी प्रवीण सिंह अढ़ायच के द्वारा जिले की स्वास्थ्य सेवाओं विशेषकर जिला अस्पताल की सुध ली गयी है। लगभग एक माह में उनके द्वारा आधा दर्जन से ज्यादा बार अस्पताल का निरीक्षण किया जा चुका है। वैसे जिलाधिकारी का एक निरीक्षण ही व्यवस्थाओं को पटरी पर लाने के लिये पर्याप्त माना जा सकता है। जाहिर है जिम्मेदारों के द्वारा जिलाधिकारी को ही गुमराह किया जा रहा होगा, वरना बार-बार निरीक्षण के बाद भी व्यवस्थाएं जस के तस रहने का दूसरा क्या कारण हो सकता है!

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