क्यों बनाये गये करोड़ों के भवन!

 

(शरद खरे)

सिवनी जिले में सरकारी स्तर पर कांक्रीट के जंगल क्यों खड़े किये गये हैं यह शोध का ही विषय माना जा सकता है। जिले भर में न जाने कितने इस तरह के भवन हैं जिनका निर्माण तो करवा दिया गया है किन्तु इनका उपयोग आरंभ नहीं होने के कारण सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं।

जिला मुख्यालय की ही बात की जाये तो लगभग पाँच साल पहले जिला चिकित्सालय परिसर में प्रसूति प्रभाग, ब्हाय रोगी विभाग (ओपीडी) सहित ट्रामा केयर यूनिट का भवन बनाया गया था। इन भवनों की लागत करोड़ों रूपये थी। इनका निर्माण पूरा होने के बाद महीनों तक ये भवन खाली ही पड़े रहे।

इन भवनों में से ओपीडी और प्रसूति प्रभाग के भवनों का उपयोग तो आरंभ हुआ पर प्रसूति प्रभाग में ऑपरेशन थिएटर अभी भी आरंभ नहीं हो पाया है। रही बात ट्रामा केयर यूनिट की तो आज भी यह शोभा की सुपारी ही बना हुआ है। इस दिशा में सांसद, विधायकों के द्वारा भी आरंभ करवाने की दिशा में पहल न किया जाना निराशाजनक ही माना जायेगा।

इसके अलावा पॉलीटेक्निक कॉलेज़ परिसर में कन्या छात्रावास का भवन भी पाँच सालों से अधिक समय से बनकर तैयार है। इस भवन को भी अब तक आरंभ नहीं करवाया जा सका है। इसे आरंभ क्यों नहीं करवाया गया है यह बात तो पॉलीटेक्निक प्रशासन ही बता सकता है। इस स्थान को लोक सभा चुनाव के पूर्व संभवतः ईवीएम का स्टोर बनाया गया था। इस भवन में सुरक्षा कर्मी भी निवास करते रहे। अगर यहाँ सुरक्षा कर्मी रहे हैं तो यह भवन पूर्ण हो चुका है और इसका उपयोग गर्ल्स हॉस्टल के रूप में किया जा सकता है।

इसके बावजूद भी इसे आरंभ क्यों नहीं करवाया गया है यह शोध का ही विषय माना जायेगा। पॉलीटेक्निक कॉलेज़ प्रशासन के द्वारा मराही माता के पीछे वाले हिस्से में एक दीवार खड़ी करवा दी गयी है। इस दीवार को बनाये जाने के पीछे यह दलील दी जा रही है कि गर्ल्स हॉस्टल की सुरक्षा को देखते हुए ऐसा किया गया है, वहीं गर्ल्स हास्टल के बाजू में दीवार तोड़कर बकायदा सीमेंट का रेंप बना दिया गया है, जिससे होकर दो और चार पहिया वाहन बेखौफ गुज़र रहे हैं। हाल ही में यहाँ एक द्वार अवश्य लगाया गया है जो दिन भर खुला ही रहता है।

इतना ही नहीं हड्डी गोदाम के पास एक करोड़ की लागत से बनवाया गया मछली बाज़ार भी तीन सालों से आरंभ होने की राह तक रहा है। मछली बाज़ार के बनने के बाद यहाँ लगायी गयी विभिन्न सामग्रियां चोरी चली गयीं या असामाजिक तत्वों के द्वारा इन्हें नष्ट कर दिया गया है। यह भवन भी दिन-रात शराब खोरी के अड्डे में तब्दील हो चुका है।

कुल मिलाकर जिले भर में करोड़ों अरबों रूपये की लागत से तैयार किये गये विशालकाय भवनों को आखिर बनाया क्यों गया है? यह बात समझ से परे इसलिये है क्योंकि अगर इन भवनों का प्रयोग नहीं करना था तो इनका निर्माण ही नहीं करवाया जाना चाहिये था। संवेदनशील जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि सालों से बनकर तैयार भवनों की सूची तैयार कर विभागीय प्रमुखों से इस बारे में जवाब सवाल अवश्य किये जायें कि इस तरह के भवनों को अब तक उस प्रयोजन में क्यों नहीं लाया गया है जिनके लिये इनका निर्माण किया गया था!