झाबुआ पावर को छूट क्यों!

 

(शरद खरे)

उद्योग विहीन सिवनी जिले में आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील में बरेला ग्राम में देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा 1260 मेगावाट का कोल आधारित पावर प्लांट संस्थापित किया गया है। इस पावर प्लांट की संस्थापना के साथ ही यह चर्चाओं और विवादों से घिरा रहा है।

इस पावर प्लांट में पहली जनसुनवाई में ही विवाद की स्थिति निर्मित हो गई थी। इसके बाद से घंसौर में संयंत्र प्रबंधन के खिलाफ आंदोलनों का दौर चलता रहा। क्षेत्रीय लोगों का आरोप भी निराधार नहीं माना जा सकता है कि संयंत्र प्रबंधन के द्वारा जनसुनवाई के दौरान किए गए वायदे नहीं निभाए जाने से क्षेत्र में अव्यवस्थाओं का आलम पसरा हुआ है।

चूंकि उस दौरान झाबुआ पावर लिमिटेड की संस्थापना का काम पूरे जोर शोर से चल रहा था और संयंत्र के लिए वजनी मशीनरी लाई जा रही थी, इसके लिए सड़कों के धुर्रे उड़ते दिख रहे थे। इसी के चलते 2014 में तत्कालीन जिला कलेक्टर भरत यादव के द्वारा झाबुआ पावर लिमिटेड को निर्देश दिए थे कि झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा घंसौर क्षेत्र की सड़कों का रखरखाव किया जाए।

विडम्बना ही कही जाएगी कि इसके बाद भी झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा जिला प्रशासन की बातों को तवज्जो नहीं दी गई। इसके बाद लगातार ही घंसौर क्षेत्र में सड़कों के जो हाल रहे हैं वे किसी से छिपे नहीं हैं। झाबुआ पावर लिमटेड के द्वारा कार्पोरेट सोशल रिपांसबिलिटीज (सीएसआर) के तहत भी काम नहीं कराए गए हैं।

देखा जाए तो इस संयंत्र के कारण भारी वाहनों की आवाजाही से उड़ने वाली धूल और संयंत्र से निकलने वाली फ्लाई एश के कारण फैलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए झाबुआ पावर लिमिटेड को क्षेत्र में वृक्षारोपण कराया जाना चाहिए था। यह वृक्षारोपण कहां कराया गया है और सात आठ सालों में ये पौधे किस आकार को ले चुके हैं इस बारे में शायद ही कोई जानता हो।

हाल ही में एक बार फिर जिला प्रशासन के द्वारा संयंत्र प्रबंधन की मश्कें कसने का प्रयास किया गया है। एक दो दिन संयंत्र प्रबंधन के वाहनों को रोके जाने के बाद एक बार फिर रात के अंधेरे में संयंत्र में भारी वाहनों की आवाजाही बदस्तूर जारी है। इसके चलते न केवल सड़कों की स्थिति गंभीर हो रही है वरन क्षेत्र का पर्यावरण भी बिगड़ता दिख रहा है।

यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि आखिर बार बार झाबुआ पावर लिमिटेड को अभय दान क्यों! क्या कारण है कि आदिवासी बाहुल्य घंसौर क्षेत्र में कहर बरपाने के बाद भी झाबुआ पावर लिमिटेड के वाहनों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है! इस तरह के अनेक प्रश्न आज भी अनुत्ततिर ही दिख रहे हैं।

संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह से जनापेक्षा है कि इस संवेदनशील मामले में वे ही कोई उचित कार्यवाही के निर्देश संबंधितों को दें ताकि वाहनों की धमाचौकड़ी से घंसौर क्षेत्र की जनता को मुक्ति मिल सके।