अतिक्रमण पर खामोशी क्यों!

 

 

(शरद खरे)

जिले भर में कोई भी कस्बा शायद ही ऐसा छूटा हो जहाँ अतिक्रमण न हो। जिला मुख्यालय में अतिक्रमण ने तो सारी हदों को पार कर दिया है। नगर पालिका और राजस्व अमले के द्वारा समय-समय पर अतिक्रमण हटाने को लेकर कार्यवाही की जाती है पर यह कार्यवाही महज नोटिस जारी करने तक ही सीमित रहती है।

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के द्वारा न जाने कितनी बार शहर को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिये निर्देश जारी किये हैं। एक बार तो जिलाधिकारी के द्वारा नगर पालिका को सारे अधिकार दिये जाकर शहर को अतिक्रमण मुक्त करवाने के निर्देश दिये थे। इसके बाद भी भाजपा शासित नगर पालिका परिषद के कानों में जूं न रेंगना आश्चर्य जनक ही माना जा रहा है। वहीं, विपक्ष में बैठी काँग्रेस के पार्षदों ने इस मामले में अपना मौन नहीं तोड़ा है।

नगर पालिका को जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा अंतिम बार 25 जून को एक बैठक के दौरान शहर को अतिक्रमण मुक्त कवराने के निर्देश दिये गये थे। इन निर्देशों के परिपालन में नगर पालिका के द्वारा नगर की नेहरू रोड की नापजोख की जाकर 27 जून को अतिक्रमण करने वालों को नोटिस जारी किये गये थे। इस बात को भी सवा महीना बीत गया है पर नगर पालिका के द्वारा आगे कार्यवाही नहीं की जा रही है।

पता नहीं भाजपा शासित नगर पालिका परिषद को शहर को अतिक्रमण मुक्त करवाने के नाम पर पसीना आ जाता है। बस स्टैण्ड से शराब दुकान होकर भैरोगंज मार्ग पर भी पालिका के द्वारा अतिक्रमण करने वालों की नापजोख की जाकर नोटिस जारी करने की रस्म अदायगी की जा चुकी है।

अतिक्रमण के जाल में फंसकर शहर के मार्ग संकरे होते जा रहे हैं, जिससे यातायात प्रभावित हुए बिना नहीं है। शहर के अराजक यातायात को पटरी पर लाने में यातायात पुलिस को भी सरोकार नज़र नहीं आ रहा है। शहर में जहाँ देखो वहाँ दुकानें ही दुकानें दिखती हैं। इन दुकानों के आसपास पार्किंग का अभाव साफ दिखायी देता है।

दरअसल, जिले के नीति निर्धारकों की इच्छा शक्ति के अभाव के चलते शहर की यह दुरावस्था हुई है। शहर में बनी यह स्थिति रातों रात तो कतई नहीं बनी है। साल दर साल इस तरह की स्थिति के चलते ही आज शहर की हालत बद से बदतर हो चुकी है, पर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि जिलाधिकारी के निर्देशों को उनके ही सामने नगर पालिका परिषद के द्वारा सरेआम हवा में उड़ा दिया गया है। जिलाधिकारी का इशारा ही काफी होता है पर यहाँ तो निर्देश दिये जाने के बाद भी नगर पालिका के द्वारा अब तक किसी तरह की कार्यवाही नहीं की गयी है। जनता परेशान है, हलाकान है, जनता का, जनता के लिये, जनता द्वारा शासन की अवधारणा सिवनी में चूर-चूर होती दिख रही है . . . अब नागरिक जायें तो किसके दर पर जाकर अपनी व्यथा सुनायें!