(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। वर्तमान में मक्का फसल में जीवाणु, तना सड़न रोग का प्रकोप देखा गया। यह जीवाणु जनित रोग के कारण पौधा टूटकर जमीन पर गिर जाता है। इस रोग से ग्रसित खेतों में प्रवेश करने पर सडे हुए पौधों से बहुत खराब दुर्गन्ध आती है। ऐसी स्थिति में खेतों में जल निकास का उचित प्रबंध करें।
मक्का की खडी फसल में पौधों की जडों के नजदीक ब्लिचिंग पाउडर (33 प्रतिशत) 3 ग्राम 10 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की जडों के पास मिट्टी में तर करें और फिर 7 दिन बाद यहीं प्रक्रिया पुनः दोहरायें। मक्का की फसल में कुछ क्षेत्रो में निचले पत्तियों का सुखना रोग देखा जा रहा है नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 75% दवा का 400 ग्राम प्रति एकर की दर से 150 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें। धान की फसल में पत्तियां उपर से सूख रही है और बाद में दोनों किनारों से पीला सफेद धारी के लक्षण दिखाई दे रहे है। जो कि धान फसल का जीवाणु पत्ती झुलसा रोग है, इसकी रोकथाम हेतु खेत से पानी निकाल कर प्लान्टोमाईसिन 1 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराईड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें या कासुगामाइसिन 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें धान की फसल में ब्लास्टर झुलसा रोग का प्रकोप भी देखा जा रहा है।
इस बीमारी में धान की पत्तियों में 15 से.मी. लंबाई तथा 0.5 से.मी. चौडाई का ऑखनुमा आकार बना होता है ये धब्बे बाद में आकार में बडे होकर आपस में मिल जाते है जिससे पूरी पत्ती पर अनियमित आकार के धब्बे निर्मित हो जाते है, नियंत्रण के लिए ट्राइसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत डब्ल्यू पी. का 0.6 ग्राम या (ट्राइसाइक्लाजोल + मैन्कोजेव) का 2.5 ग्राम या इप्रोबेनफास 48 ई. सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाब करें जैविक नियंत्रण के लिए बोटानिकल्स जैसे बेल या तुलसी की पत्ती 25 ग्राम पेस्ट प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर 7 से 10 दिनों के अंतराल पर उपयोग करें धान की फसल में इस समय शीथ ब्लाइट रोग जमीन की सतह से जुडे पौध वाले भाग पहले गहरे भूरे धब्बो के रूप में दिखता है एवं धीरे-धीरे पूरे तने पर फैल जाता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए ऐजाक्सीस्ट्रोबिन 23 प्रतिशत का 1 मि.ली. या हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत का 2 मि.ली. या वेलीडामाईसिन 3 एस.एल. का 2 मि.ली. या एजोक्सीस्ट्रोबिन 18.2 प्रतिशत डायफेनोकोनाजोल 11.4 प्रतिशत एस.सी. का 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें कुछ क्षेत्रों में गाल मिज, पोंगा कीट का प्रकोप धान की फसल में देखा जा रहा है इसके नियंत्रण के लिए कार्टप हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत दानेदार का 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाले या पोंगा के नियंत्रण के लिए पर्णीय छिडकाव फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. का 3 मि.ली. या क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. का 4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडकाव करें। सोयाबीन फसल में तम्बाकू की इल्ली का प्रकोप देखा गया नियंत्रण हेतु क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी 100 मि.ली./ है। छिडकाव की सलाह दी गई।
इसी प्रकार सोयाबीन फसल में तना मक्खी एवं गर्डल बीटल के नियंत्रण हेतु कृषकों को सलाह है कि नियंत्रण हेतु बीटासायफ्लुथ्रिन + इमीडाक्लोप्रीड 350 मि.ली./है. या थायमिथोक्सम + लेम्बडा सायहेलोथ्रिन 125 मि.ली./है. का छिडकाव करें। जहां केवल सेमीलूपर इल्लियों का प्रकोप हो रहा है, वहां लेम्बडा सायहेलोथ्रीन 4.9 एस. सी. (300 मि.ली./है.) या इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. (333 मि.ली./हेक्टे.) या फ्लूबेन्डियामाईड 39.35 एस.सी. (150 मि.ली./है.) या फ्लूबेन्डियामाईड 20 डब्ल्यू.जी. (275 मि.ली./हेक्टे. का छिडकाव करें। सोयाबीन फसल में एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट नामक रोगों के नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल (625 मि.ली./है.) अथवा टेबूकोनाझोल + सल्फर (1 कि.ग्रा./है) अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यू.जी. (500 ग्राम./है.) अथवा हेक्जाकोनाझोल 5 ई. सी. (800 मि.ली./है.) से छिडकाव करें। चूंकि सोयाबीन की फसल अब लगभग 70 दिन की और घनी हो चुकी है। अतः रसायनों का अपेक्षित प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए 500 ली. पानी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग अवश्य करें। जिन क्षेत्रों में अभी भी जल भराव की स्थिति है, सलाह है कि शीघ्रातिशीघ्र अतिरिक्त जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें।

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