(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। शक्ति उपासन का महापर्व चैत्र नवरात्र विशेष महत्व का पर्व है सनातन काल से इस पर्व को विशेष साधन के लिये उपयुक्त माना गया है। चैत्र नवरात्र एवं शारदीय नवरात्र ऋतु परिवर्तन के साथ प्रारंभ होने वाले पर्व है। यह दोनों नवरात्र शक्ति संचय और संकल्प के पर्व है।
इनका जहाँ धार्मिक महत्व है वही वैज्ञानिक आधार भी है। श्रद्धा और भक्तिभाव से संकल्पपूर्वक इस पर्व को मानने से मानसिक तौर पर विभिन्न परिस्थितियों और परेशानियो का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है। वही वैज्ञानिक आधार पर आहार परिवर्तन से शरीरिक शुद्धता और पवित्रता मौसमी बीमारियों से लडऩे की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है।
शनिवार से प्रारंभ हो रहे चैत्र नवरात्र पर्व के संबंध पं. जानकी बल्लभ मिश्र एवं स्वामी बलवंता नंद महाराज के अनुसार सनातन धर्मियों को श्रद्धा और भक्तिभाव से जगत जननी की उपासना करना श्रेष्ठ है। नवरात्र पर्व की श्रेष्ठ उपसाना के संबंध में उनसे आज मिलन पहुँचे एक प्रतिनिधि मंडल को उन्होंने बताया कि सनातन धर्मी परंपरागत ढंग से पूजा अर्चना कर मानसिक पवित्रता और भक्ति भाव से जगतजननी की उपासना करता हेै।
आपने बताया कि धार्मिक विधि अनुकूल पूजा अर्चना श्रेष्ठ है परंतु समयानुकूल श्रद्धा सहित छोटे संकल्प से भी इसकी पूर्णता होती है। चैत्र नवरात्र पर्व पर सनातनधर्मी विश्वकल्याण की भावना से दैनिक स्नान, स्वच्छ पवित्र वस्त्र धारण कर तिलक वंदन, संध्या उपासना ज्ञान वर्धक उच्च विचारों वाले शास्त्रो का पठन पाठन करें अपने इष्ट का ध्यान करते हुये गुरू मंत्र जाप धार्मिक चर्चा में सहभागी बने यथासंभव हवन कर सकते है। देव स्थानों के दर्शन मंदिर में करने से एवं आहार की शुद्धता विचारों की शुद्धता, त्याग, संयम साधक को शक्ति प्रदान करने की सामर्थ रखते है।
स्वामी बलवंतानंद महाराज के अनुसार विधि विधान से नवरात्र में शक्ति उपासना का आलौकिक प्रभाव होता है परंतु सुविधा और समय आभाव में छोटे संकल्प लेकर भी उपासना की जा सकती है। जो व्यक्ति उपवास रहकर अधिक साधना नहीं कर सकते वे शुद्ध अंतरूकरण से स्वल्प अनुष्ठान कर सकते है। नवरात्र पर्व में किये गये पवित्र कार्याे और अनुष्ठानों का कई गुना प्रभाव होता है।
नवरात्र पर्व पर उपासना का महत्व विषय पर चर्चा करने पहुँचे प्रतिनिधि मंडल में ब्राह्मण समाज के जिला अध्यक्ष ओम प्रकाश तिवारी, महा सचिव प्रशांत शुक्ला, डाँ. रामकुमार चतुर्वेदी, मनोज मर्दन त्रिवेदी, गणेश गुप्ता एवं डां. डी एस सेंगर चर्चा में शामिल रहे।
स्वामी बलवंतानंद महाराज ने अपने संदेश में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया कि व्यक्ति की शारीरिक शुद्धता विचारो की पवित्रता, के साथ मंदिर में नित्य जाये तो उसके विचारों में शुद्धता बनी रहती है। विचारों और आहार की शुद्धता उसे शक्ति प्रदान करतीे है। परमार्थ के भाव जागृत होते है और यही परमार्थ विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
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