घंसौर के दर्जनों ग्रामों में ओलावृष्टि से फसलें नष्ट

 

बण्डोल, भोमा में भी हुई ओलावृष्टि

(सादिक खान)

सिवनी (साई)। जिले में बदले मौसम ने किसानों की पेशानी पर पसीने की बूंदें छलका दी हैं। जिले के ग्रामीण अंचलों में बृहस्पतिवार को बारिश और ओले गिरे।

आदिवासी बाहुल्य घंसौर तहसील के अंतर्गत राजस्व निरीक्षक मण्डल घंसौर और कहानी क्षेत्र के दर्जनों ग्रामों में एक बार फिर ओलावृष्टि का कहर किसानों पर टूटा है। वहीं कोराना वायरस की आपाधापी और प्रदेश सरकार में चल रही उठापटक में शासन प्रशासन किसानों पर आयी आपदा की अनदेखी कर रहा है।

किसानों ने शासन प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि आपदा ग्रस्त किसानों की क्षतिग्रस्त हुई फसलों का सर्वे कर मुआवज़ा देने के मामले में कोई पहल नहीं की जा रही है। इससे पहले खरीफ सीजन में अतिवृष्टि के कारण घंसौर तहसील क्षेत्र के सभी पटवारी हल्का क्षेत्र में मक्का की फसल चौपट हो चुकी है जहाँ किसानों को आज पर्यंत तक मुआवज़ा नहीं दिया गया। अधिकारीयों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने खेतों में जाकर क्षतिग्रस्त फसलों का जायजा लेने की औपचारिकता अवश्य निभायी।

वहीं अब रवि सीज़न में लगातार ओला वृष्टि से फसलें प्रभावित हो रही हैं। घंसौर के शिकारा, खमरिया के अलावा नर्मदा तटीय इलाकों में झुरकी, झिंझरई, केदारपुर क्षेत्र के दर्जनों ग्रामों में एक बार फिर 19 मार्च की दोपहर मौसम ने करवट ली। क्षेत्र में भारी बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों की खड़ी फसलें नष्ट हो गयीं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार खालेघाट, शिकारा, खमरिया क्षेत्र का कृषि रकबे में बहुतायत संख्या में किसानों ने गेहूँ, मसूर, चना, मटर आदि दलहन फसलों की बोवनी की था। किसानों की फसलें खेतों में पककर तैयार खड़ी थीं, किंतु मौसम की मार के आगे किसान बेबस हैं कुछ ही मिनिटों तक हुई ओलावृष्टि ने सबकुछ चौपट कर दिया खड़ी फसलें खेतों में बिछ गयी हैं।

दलहन फसलों के दाने पौधों से टूट कर खेतों में बिखर गये। ऐसे में क्षतिग्रस्त फसलों का सर्वे एवं शीघ्र मुआवजा देने की मांग किसान उठा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि घंसौर क्षेत्र का अधिकतम बोनी रकबा असिंचित होने की वजह से प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है जहाँ किसान बोनी से पहले सहकारी समितियों एवं साहूकारों से कर्ज लेकर खाद एवं बीज लेकर बोवनी करते हैं तथा खेतों से प्राप्त होने वाली उपज बेचकर सालभर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।

इस बार प्राकृतिक आपदा से फसलें नष्ट होने के कारण किसान परिवारों के भरण पोषण का संकट उत्पन्न हो गया है। सरकारी मुआवज़ा से किसानों को कुछ हद तक राहत मिल सकती है।