रसूखदारों के क्रॅशर कर रहे हवा दूषित

 

खनिज विभाग और प्रदूषण नियंत्रण मण्डल हैं मौन

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। देश की राजधानी दिल्ली की तरह सिवनी में भी प्रदूषण, खतरनाक स्तर की ओर बढ़ रहा है। ठण्ड के इस मौसम में शहर की कई व्यस्त सड़कों पर धुंध नज़र आ रही है। वहीं, शहर से चंद किलोमीटर दूर नियमों को ताक पर रखकर चल रहे क्रॅशर भी बेतहाशा धूल उगल रहे हैं।

आलम यह है कि शहर में उड़ती धूल और हवा में तैरते कण लोगों को परेशान कर रहे हैं। प्रमुख चौराहों पर धूल और धुंए से सांस लेना मुश्किल हो रहा है। यदि कुछ घण्टे वाहन खड़े रह जायें, तो वे धूल से पट जाते हैं। हालत यह है कि प्रमुख क्षेत्रों में पेड़ भी धूल से पट गये हैं।

शहर की प्रमुख सड़कों पर धूल के गुब्बारे उठना आम बात है। यदि कोई दुपहिया वाहन चालक बस, ट्रक या कार के पीछे चल रहा है, तो वाहन के धुंए के साथ धूल भी उसके फेफड़ों में समा रही है। नगर पालिका में कचरा साफ करने के लिये अब तक किसी भी तरह की मशीनों को बुलाने की कवायद नहीं की गयी है।

सिवनी से महज चंद किलोमीटर के एरियल डिस्टेंस पर बण्डोल के आसपास संचालित स्टोन क्रॅशर की डस्ट आबोहवा में जहर घोल रही है। यहाँ डस्ट की धुंध को यदि नापा जाये, तो प्रदूषण के खतरनाक स्तर का पता भी चल सकेगा। हालात ये हैं कि सिवनी से छपारा मार्ग पर 20 से 25 मिनिट ड्राईविंग करने के बाद राहगीर परेशान हो जाते हैं। सुबह सवेरे और गौ धूली बेला में दृश्यता कम होने के चलते अक्सर ही दुर्घटनाओं का खतरा मण्डराता रहता है।

इसके अलावा यहाँ रहने वालों की यदि जाँच की जाये तो पता चलेगा कि वे दिल्ली से कम, पर कमोबेश वैसे ही खतरनाक प्रदूषण से जूझ रहे हैं। बण्डोल क्षेत्र में नियम कायदे ताक पर रखकर बड़ी संख्या में स्टोन क्रॅशर संचालित हो रहे हैं। उनसे निकलने वाली डस्ट से आसपास के पेड़ पौधे पट गये हैं।

आसपास के इलाके में चिंताजनक हालात हैं, लेकिन जिम्मेदार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी मौके पर झांकने भी नहीं जा रहे हैं। कायदे से स्टोन क्रॅशर के चारों ओर संचालक को कवर करना चाहिये, जिससे हवा में डस्ट न उड़े, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी है।

वहीं, चिकित्सकों का मानना है कि सिवनी की हवा में धूल के कण से लोगों में सांस की तकलीफ हो रही है। नाईट्रोजन गैस भी निरंतर बढ़ रही है। प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर जाने के कारण दमा, अस्थमा और एलर्जी की समस्या बढ़ रही हैं। बच्चों के साथ ही बड़ों में भी एलर्जी हो रही है। कई गंभीर बच्चों को तो डस्ट से बचने के लिये वाहन चलाते समय या मुख्य सड़क पर चलने में मॉस्क लगाने की सलाह दी जाती है।