दानवीर कुंभा बाबा को ही दिया बिसार!

 

 

0 प्रशासन लिखवा रहा जिले का नया इतिहास . . . 11

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले की सरकारी वेब साईट में अनेक विसंगतियां हैं। इन विसंगतियों को दूर करने के प्रयास प्रशासन के द्वारा नहीं किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। सरकारी वेब साईट को देखकर लोग भ्रमित भी हो रहे हैं। सरकारी पोर्टल में आदिवासियों की आस्था के स्थल कुंभा बाबा को भी स्थान नहीं दिया गया है।

बताया जाता है कि कुरई क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पेंच नेशनल पार्क के अंदर आदिवासियों का एक देव स्थल है, जहां जाने के लिए आदिवासियों को भारी मशक्कत करना पड़ता है। पहले आदिवासी समुदाय के लोग कभी भी पूजन अर्चन करने के यहां लिए चले जाते थे अब उन्हें वर्ष में मात्र एक बार पेंच प्रबंधन के वाहनों में और उनके निगरानी में पूजन पाठ करने के लिए जाना पड़ताा है।

कुंभा बाबा जो कि आदिवासियों के देव स्थल के रूप में प्रसिद्ध है उनके इतिहास के बारे में आदिवासी समाज के बुजुर्ग बताते है कि वे कुरई ब्लॉक के ग्राम परासपानी में नवरेती परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बड़ा कुंभा बाबा देव स्थल में जाने के लिए पेंच टाइगर रिजर्व के कर्माझिरी गेट से जाना होता है और यह स्थान मुख्य मार्ग से लगभग तीन किलो मीटर की दूरी पर पड़ता है।

जानकार बताते हैं कि आदिवासी समुदाय के लोग इस स्थान पर संजोई बिदरी लेकर जाते हैं और उसे चढ़ाते है जिससे मान्यता है कि उनके साल भर अनाज नहीं घटता है। इसके साथ ही बीमारी परेशानी में लाभ मिलता है। प्रतिवर्ष दिसंबर में अमावस्या के दिन पूजन करने के लिए आदिवासियों को प्रवेश दिया जाता है लेकिन अब वहां पर पहले की भांति मेला नहीं लगता है।

जानकारों की मानें तो बड़ा कुंभा बाबा जो कि विराजमान काली का बेटा संदरासुर के नाम से जाने जाते है एवं बाबा दनवई का गढ़ व किला के रूप में जाना जाता है। इसके कारण ही गांव का नाम सिंदरिया भी पड़ा है। दनवई राजा इसलिये कहा जाता था क्योंकि वे दान किया करते थे।

जानकार बताते हैं कि उस समय के क्षेत्रीय राजा को यह सहन नहीं हो रहा था इसलिए उन्होंने उन पर आक्रमण करवा दिया था। जिसके कारण कुंभा बाबा वहां से पलायन कर सींघी मट्टा के पहाड़ पर चले गए थे। वहां पर उन्होंने शिव शक्ति की पूजा प्रारंभ कर दी थी लेकिन आक्रमणकर्ता वहां पर भी पहुंच गए तो वे राख के ढेर में छिपकर रहने लगे थे।

जानकारों की मानें तो इसी के चलते उनका नाम कुंभा बाबा रखा गया जो कि गोंडी शब्द है। आदिवासी बजुर्ग बताते है कि सींघी पहाड़ में एक स्थानीय चरवाहा पहुंचा और उसने राख के ढेर में कुंभा बाबा को देखा तो उसने उनसे संतान और धन की मांग की। उनके आशीष से उसे संतान की प्राप्ति हो गई। जिसके बाद लोगों ने कुंभा बाबा की पूजा करनी शुरु कर दी। जब कुंभा बाबा का निधन हुआ तो उन्हें सींघी मठ्ठा पहाड़ में दफनाया गया और वहां पत्थर की मूर्ति स्थापित की गई।