(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। अमेरिका के बाद अब भारत में क्विनवा फसल बढ़ाने की योजना बनायी गयी है। यह फसल किसानों का भविष्य संवारने के साथ शुगर, हार्ट आदि के मरीजों के लिये फायदेमंद साबित हो रही है। गेहूँ खाने से जिनको एलर्जी होती है उनके लिये भी क्विनवा फसल एक बेहतर विकल्प होगा। इसकी पुष्टि कृषि विज्ञान केन्द्र सिवनी के वैज्ञानिक डॉ.एन.के. सिंह ने की है।
जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय जबलपुर ने टीएसपी योजना अंतर्गत मध्य प्रदेश में सिवनी के अलावा मण्डला, बालाघाट, डिंडोरी, शहडोल, उमरिया और अनूपपुर में क्विनवा फसल को प्रयोग के तौर पर पाँच से 10 एकड़ में लगाया गया है। विश्व विद्यालय के निर्देश पर संबंधित कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक किसानों के बीच पहुँचकर खेत में फसल लगवाने के साथ उसकी देखभाल सहित अन्य तकनीकी जानकारी के लिये प्रशिक्षण दे रहे हैं।
फसल लगाने के लिये बीज भी कृषि वैज्ञानिकों ने उपलब्ध कराया है। इस फसल को धान कटाई के बाद लगाया गया है। लगभग 120 दिन में यह फसल तैयार होगी। जिले के कुरई विकास खण्ड के रमपुरी में इसे प्रयोग के तौर पर आरंभ किया गया है। बेनी राम, मुंगलसी, बासुदेव आदि किसानों के खेत में इसे लगाया गया है। कुछ किसानों का फसल तैयार हो गया है, जबकि कुछ के फसल तैयार होने के समीप पहुँच गयी है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ.सिंह की माने तो अमेरिका के लोग सबसे अधिक शुगर की बीमारी से पीड़ित हैं। क्विनवा फसल से उनको लाभ मिलता है। अब इसे भारत में बढ़ाने की योजना है। देश के विभिन्न प्रांतों के साथ मध्य प्रदेश में इसकी शुरुआत की गयी है। पहली बार इसे प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक जिलों में लगाया गया है। अगले सीजन में इसे और बढ़ाया जायेगा। किसान इसे गेहूँ की जगह लगा सकते हैं। यह शुगर के अलावा ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। हार्ट से पीड़ित मरीजों के लिये भी यह लाभप्रद है।
एक एकड़ में खर्च सात हजार, कमाई 49 हजार रूपये : कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ.सिंह का दावा है कि क्विनवा फसल लगाने में किसान को एक एकड़ में लगभग सात हजार रूपये का खर्च आता है। इससे कमाई लगभग 49 हजार रूपये की होती है। धान की फसल की कटाई के बाद इसे लगाया जाता है। लगभग 120 दिन में यह फसल तैयार हो जाती है। वर्तमान समय में किसान को बीज उपलब्ध कराने से लेकर तैयार फसल की खरीदी कृषि विज्ञान केन्द्र कर रहा है।
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