यदि बच्चे को है अस्थमा तो होली पर ध्यान रखें ये बातें

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। होली का क्रेज जितना ज्यादा बड़ों को है उससे कहीं ज्यादा इंतजार बच्चों को है। उन्होंने तो अभी से होली के लिये प्लान बनाने आरंभ कर दिये हैं।

मम्मी-पापा को कैसे सरप्राइज करना है और पड़ोस के बच्चों पर कैसे रंग डालना है, इस बात पर खूब विचार विमर्श चल रहा है। होली का यह त्यौहार कुछ खास बच्चों के लिये उतनी खुशियां नहीं लाता जितनी की आम बच्चों के लिये। ये खास बच्चे अस्थमा के पेशेंट हैं, जिन्हें डॉक्टर्स सख्त हिदायद देते हैं कि वे होली के रंगों से दूर रहें। यदि आपका बच्चा भी अस्थमा या श्वास की किसी अन्य बीमारी से पीड़ित है तो थोड़ी सी सावधानी रखें और बच्चों को होली का मजा लेने दें।

साँस की नली प्रभावित : चिकित्सक बताते हैं कि होली के गुलाल या रंगों की एलर्जी साँस की नली को प्रभावित करती है। इससे बच्चों की साँस की नली ज्यादा संवेदनशील हो जाती है। कई बार स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है। कई बार साँस की नली में सूजन आ जाती है। जिसके तत्काल बाद ही अस्थमा के रोगियों की आवाज में घरघराहट की आवाज, खांसी, साँस लेने में तकलीफ और छाती में जकड़न जैसी समस्याएं होती हैं।

सूखे रंगों से बचायें : परिवार के सदस्य ध्यान रखें कि बच्चा हवा में उड़ने वाले सूखे रंगों के संपर्क में न आयें। ये रंग मुँह और नाक के द्वारा श्वास नली में पहुँच जाते हैं। रंग गुलाल उड़ाते समय बच्चों को वहाँ से दूर रखें। रंगों के बीच रखे खाने से सामान बच्चों को न दें। यदि उन्हें खांसी उठे तो तत्काल उस जगह से दूर ले जायें। अस्थमा पेशेंट को बहुत ज्यादा देर होली नहीं खेलनी चाहिये। परिजन चाहें तो बच्चों को पिचकारी से होली खेलने दें ताकि वे सीधे तौर पर रंग लगे लोगों के संपर्क में नहीं आयेंगे।

नजरअंदाज न करें समस्या : कई अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि अगर लगातार समस्या को नजर अंदाज करते रहेंगे तो समस्या से जुड़े रिस्क बढ़ते रहते हैं। परिवार अकसर बच्चे की अस्थमा की समस्या को समझते नहीं, इसलिये हॉस्पिटल में भर्त्ती होने की दर में इजाफा होता रहा है।

होली के दौरान जब बच्चों को रंगों के कारण एलर्जी हो जाती है तो अभिभावक यह मानने को ही तैयार नहीं होते कि अस्थमा की वजह से बच्चे को परेशानी हो रही है। छाती से जुड़े चिकित्सक जोर देते हैं कि अस्थमा से फेफडों को नुकसान पहुँचता है, इसलिये दवा ऐसी होनी चाहिये, जिसे फेफड़े आसानी से खींच पायें। इनहेलर के इस्तेमाल से अस्थमा अटैक को नियंत्रित करने में मदद मिलती है और इसका नियमित इस्तेमाल अस्थमा अटैक को रोकता है।